मारवाड़ी लोकोक्तियाँ-मुहावरे-कहावतें
Saturday, October 15, 2011
सांत हाथ सुलखणा , हांड़ी बैठे कुलखणा !
सांत हाथ सुलखणा , हांड़ी बैठे कुलखणा !
अर्थ :- ज्यादा साधनों से कार्य अच्छा और जल्दी हो जाता है ,परन्तु खर्चा भी ज्यादा होता है (उन साधनों को संभालना भी उतना ही कठिन होता है .)
Wednesday, October 12, 2011
कदै घी घणा,कदै मुट्ठी चणा !
कदै घी घणा,कदै मुट्ठी चणा ! -
शब्दार्थ :- कभी बहुत अधिक घी प्राप्त होना और कभी केवल एक मुट्ठी चने ही मिलना।
भावार्थ :- किसी वस्तू या परिस्तिथि की कभी बहुतायत होना और कभी अत्यंत कमी या न्यूनता होना ।
Thursday, October 6, 2011
भाड्डी आंगळी माथे रे ई मुतण रे काम नी आवे !
भाड्डी आंगळी माथे रे ई मुतण रे काम नी आवे !
अर्थ :- दुसरे की जरुरत के समय भी ,अपनी कोई उनुपयोगी वस्तु भी न देना .
घरे छोकरों रो घाटो आयो , तड्डों बाई ने तेड़ो आयो .
छाळी दूध देवे , मिन्गणीयां भेळ देवे !
छाळी दूध देवे , मिन्गणीयां भेळ देवे !
शब्दार्थ अर्थ :- भेड़ दूध दे और उसमें मिन्गणी (उसका मल) मिला दे .
भावार्थ :- किसी पर कोई ऐसा उपकार करना अहसान जाता कर करना ,वो भी ऐसे कि कोई काम न आवे।
Wednesday, October 5, 2011
मारे जिने मादयो मारे ,मदया ने कुण मारे .
मारे जिने मादयो मारे ,मादया ने कुण मारे .
शब्दार्थ :-मारता है उसे (छोटा) नन्दी ही मरता है,उसे कोई नहीं मार सकता,क्योकि उसके पीछे बलशाली का हाथ होता है !
भावार्थ अर्थ :- बलशाली /दबंग से कोई पंगा नहीं लेता .
Thursday, May 19, 2011
आक को कीड़ो आक में, और ढ़ाक को कीड़ो ढ़ाक में ई राज़ी रेवे .
आक को कीड़ो आक में, और ढ़ाक को कीड़ो ढ़ाक में ई राज़ी रेवे .
शब्दार्थ - आंकड़े का कीड़ा (जो कि अत्यंत जहरीला पौधा है, ढ़ाक (पलाश का पौधा जिसे जंगल की आग भी कहते है ) का कीड़ा ढाक में खुश रहते हैं।
भावार्थ अर्थ :- व्यक्ति अपने परिवेश में ही प्रसन्न रहता है .
खाँगी - बाँकी कंवारी रोटी !
खाँगी - बाँकी कंवारी रोटी !
अर्थ :- कोई भी वस्तू ,चाहे कैसी भी हो , बिलकुल अनुपयोगी नहीं हो सकती है .
जायोड़ा ई गोरा नई होवै,तो नहायोडा कठेसुं होई !
जायोड़ा ई गोरा नई होवै,तो नहायोडा कठेसुं होई ?
शब्दार्थ : - जन्म से ही रंग गोरा नहीं हो तो,नहाने से गोरा कैसे होगा ?
भावार्थ :- अगर किसी चीज़ के मूल में ही खोट हो तो,ऊपरी रूप से मरमत्त से कोई विशेष फायदा नहीं होगा .
खोड़ी बहु बुहारो काढ़े , सांत जणा पग पकड़ो जी !
खोड़ी बहु बुहारो काढ़े , सांत जणा पग पकड़ो जी !
शब्दार्थ :- एक पाँव से असक्षम बहु को झाड़ू निकलने का कार्य दिया,अब सांत लोग उसका पांव पकड़ो ( ताकि वो झाड़ू निकल सके )
भावार्थ :- असक्षम को कार्य भार दिया और मुसीबत मोल ले ली .
नाई नाई ! केस कित्ता ? सोमवार ने सामे आवै !
नाई नाई ! केस कित्ता ? सोमवार ने सामे आवै !
शब्दार्थ :- बाल कटवाने से पहले व्यक्ति पूछता है की, नाई मेरे बाल कितने बड़े हो गए हैं। वो कहता है कि ,जब कटवाओगे तो पता लग जायेगा।
भावार्थ :- धीरज रखने पर,समय अनुसार,हर बात का परिणाम सामने आता ही है .
नि मरे ,नि माचौ छोड़े !
नि मरे ,नि माचौ छोड़े !
अर्थ:- न हक़ से अलग हटे न उस से दूर हो .
बाप बता ,के( नई तो ) श्राद्ध कर !
बाप बता ,के( नई तो ) श्राद्ध कर !
अर्थ :- या तो प्रमाण बताओ ,या फिर अपनी बात से पीछे हट जाओ .
राणाजी केहवे वठैई रेवाड़ी !
राणाजी केहवे वठैई रेवाड़ी !
अर्थ :- अपने से ऊपर अधिकारी की बात को हर हाल में मान लेना .
ऊंट बिलाव लेग्यो , के हांजी ! बिलाव ऊंट लेग्यो , के हांजी !
ऊंट बिलाव लेग्यो के, हांजी ! बिलाव ऊंट लेग्यो के, हांजी !
शब्दार्थ :-क्या ऊंट बिल्ली को चुरा ले गया ? हां जी ! क्या बिल्ली ऊंट को चुरा ले गयी ? हां जी !
भावार्थ :- अपने से प्रभावशाली व्यक्ति की हर बात चाहे वो उचित हो या अनुचित, हाँ में हाँ मिलाना .
Monday, May 16, 2011
बासी बचे न कुत्ता खाय !
बासी बचे न कुत्ता खाय !
अर्थ :- किसी चीज़ को व्यर्थ न करना .
Monday, May 2, 2011
ओखळी में माथो दियो, घाव सूं कई डर .
ओखळी में माथो दियो, घाव सूं कई डर .
शब्दार्थ :-उखली (जिसमें की अनाज को कूटा जाता है )में,अगर सर दाल ही दिया है तो फिर चोट से क्या डरना
भावार्थ :- कार्य आरम्भ कर दिया है ,तो उसको आरम्भ कर दिए जाने के बाद कठिनताओं से घबराना नहीं चाहिए।
घणा में घुण पड जावे .
घणा में घुण पड जावे .
अर्थ :- किसी अच्छे गुण या साधन की ज्यादा मात्रा में उपलब्धता भी कभी-कभी हानिकरक हो जाती है .
घणों धी,थाम्बा पर न'ई रगडी ज्यै !.
घणों धी,थाम्बा पर न'ई रगडी ज्यै !.
शब्दार्थ :- ज्यादा घी उपलब्ध हो तो भी,खम्भे पर नहीं चुपड़ा (लगाया) जा सकता है !
भावार्थ :- साधनों की आसानी से उपलब्धता को व्यर्थ नहीं किया जाता है !
घी ढुळीयो तो मुगां में .
घी ढुळीयो तो मुगां में .
अर्थ :- कुछ नुकसान हुआ , हो तो भी घूम - फिर कर अपने पास ही लौट आना .
बींद रे मुंडे लाळौं पड़े , जानिया लाई कई करे !
बींद रे मुंडे लाळौं पड़े,जानिया लाई कांई करे !
शब्दार्थ :- वर के मुँह से लार गिरे,तो बाराती बचारे क्या करे ?
भावार्थ :- नेतृत्व ही लालचवश कमजोर हो जाये तो ,टीम लाचार हो जाती है .
धणो हेत टूटण ने,मोठी आँख फूटण ने !
धणो हेत टूटण ने,मोठी आँख फूटण ने !
शब्दार्थ :- ज्यादा प्रेम का अंत लड़ाई से होता है और ज्यादा बड़ी आँख आखिरकार फुट कर ही रहती है।
भावार्थ :- अति हर चीज़ की बुरी होती है,फिर चाहे किसी के प्रति अत्यधिक प्रेम ही क्यों न हो।
मन बाहर रा पावणा , थने घी घालूं के तेल !
मन बाहर का पावणा , थने घी घालूं के तेल !
शब्दार्थ :- बगैर इच्छा के आये हुए महमान,तेरा स्वागत भोजन में घी ङाल कर करूं या तैल ङाल कर।
भावार्थ :- बगैर दिल से जो काम करना पड़े , उसे येन-केन तरीके से निपटाना .
जेड़ो खावे अन्न , वेड़ो होवै मन !
जेड़ो खावे अन्न , वेड़ो होवै मन !
अर्थ :- यथा आहार , तथा विचार .
काळा सागे गोरो बेठे तो, रंग नई तो लखण तो आवैई !
काळा सागे गोरो बेठे तो, रंग नई तो लखण तो आवैई !
अर्थ :- जैसे लोगों की संगत होगी,उनका असर तो आता ही है .
Friday, April 29, 2011
घी रोटा घी को , ला म्हारे सागे रोटे री ओळ !
घी रोटा घी को , ला म्हारे सागे रोटे री ओळ !
अर्थ :- जिद्द कर के , अपनी बात पर अड़े रहना .
आँधा ने नुतो,दो ने जिमावो !
आँधा ने नुतो,दो ने जिमावो !
शब्दार्थ :- अंधे व्यति को खाने पर आमंत्रित करना पड़े तो,उसके साथ एक और व्यक्ति को भी बुलाना पड़ेगा,ताकि वो उस अंधे व्यक्ति को लेकर आ सके।
भावार्थ :- अधूरे ज्ञान/अधूरे संसाधनो से मज़बूरी वश कोई काम लेना पड़े तो,अनआवश्यक रूप से दुगना खर्च या दुगनी मेहनत लग जाती है।
आंधी पीसे , कुत्ता खाय , पापी रो धन परले जाय !
आंधी पीसे , कुत्ता खाय , पापी रो धन परले जाय !
अर्थ :- कुटिलता से जमा किया हुआ , कोई दूसरा हड़प ले !
फूटी किस्मत गरीब री , भरी चिलम ढूळ जाय !
फूटी किस्मत गरीब की ,भरी चिलम ढूळ जाय !
शब्दार्थ :-गरीब व्यक्ति की किस्मत इतनी ख़राब है कि,उसकी भरी हुई चिलम (हुक्का) ही गिर जाए !
भावार्थ :- किसी काम को अत्यधिक मेहनत से जमाया जाये परन्तु अंत में हाथ में आया हुआ काम बिगड़ जाये .
मोंग तोंग मटको कियो , खोस लियो , फीको पड्यो !
मांग-टांग मटको कियो,खोस लियो,फीको पड्यो !
शब्दार्थ :- मांग कर कुछ पहना (पहन कर इतराये = मट्टका किया) पर देने वाले वापस छीन लिया।
भावार्थ :- किसी से उधार लेकर काम जमाया,परन्तु उपयोग लेने के पहले ही उसने वापस ले लिया और लेने वाले को नीचा देखना पड़ा !
सारी रात पीसीयो , ढकणि में ओसारियो !
सारी रात पीसीयो , ढकणि में ओसारियो !
शब्दार्थ :- पूरी रात पिसाई की (आटा बनाया) इतनी ही पिसाई हुई जिसे ढक्कन में संधा जा सके।
अर्थ :- बहुत ज्यादा मेहनत की , परन्तु प्रतिफल बहुत ही नगण्य मिला,क्योकि मेहनत की दिशा ठीक नहीं थी। .
बान्दरो हुतो , बिच्छू काट ग्यो !
बान्दरो हुतो , बिच्छू काट ग्यो !
अर्थ :- अगुणी होते हुए भी , शेखी बघारने वाले को , अपनी चलाने के लिए कुछ और बहाना मिल जाना .
( करेला और नीम चढ़ा ).
तीन तेरी , घर बिखेरी !
तीन तेरी , घर बिखेरी !
घर रा छोरा घट्टी चाटे, पाडौसी ने आटो !
घर रा छोरा घट्टी चाटे, पाडौसी ने आटो !
अर्थ :- दिखावे के लिए आपना नुकसान करते हुए, भी दूसरों का लाभ करना .
थोथा चणा , बाजे घणा !
थोथा चणा , बाजे घणा !
अर्थ :- असक्षम होते हुए भी , बढा-चढ़ा कर बोलना / कार्य करना .
कां तो गैली सासरे जावै कौन्या,जावै तो पाछी आवे कौन्या !
कां तो गैली सासरे जावै कौन्या,जावै तो पाछी आवे कौन्या !
शब्दार्थ :- पागल लड़की या तो सुसराल जाने को आनाकानी करती है, और अगर चली जाये तो वापस आने को आनाकानी कराती है।
भावार्थ :- कोई कार्य का या तो न किया जाना और अगर किया जाये तो फिर अत्यधिक कर लेना .
घर रा तो घट्टी पीसे ,पावणों ने पूरी भावे !
घर रा तो घट्टी पीसे ,पावणोंने पूरी भावे !
शब्दार्थ :- घरवाले तो घट्टी (चक्की ) चला कर आटा तैयार करे और मेहमानों को पूरी-पकवान खाने की इच्छा करे।
भावार्थ :- सामने वाले की मज़बूरी को न समज़ते हुए,अपने स्वार्थ को पूरा करवाने पर अड़ जाना .
तीन बुलाया तेरा आया , दे दाळ में पाणी ...
तीन बुलाया तेरा आया , दे दाळ में पाणी ...
शब्दार्थ :- भोजन करने हेतु तीन लोगों को न्यौता दिया,परन्तु तेरह लोग आ गए,अतः दाल में पानी डाल कर सब की पूर्ति कर ली जाये।
भावार्थ :- परिस्थिओं मुताबिक,अपने कार्य को सिद्ध करना करना पड़े, तो गुणवत्ता का ध्यान करे बिना, कार्य पूर्ण कर लिया जाये।
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