Sunday, September 28, 2014

ठावें-ठावें टोपली,बाकी ने लंगोट।

ठावें-ठावें टोपली,बाकी ने लंगोट।

शब्दार्थ :- कुछ चुने हुए लोगों को टोपी दी गयी परन्तु शेष लोगों को सिर्फ लंगोट ही मिली ।


भावार्थ :- कुछ विशेष चयनित लोगों का तो यथोचित सम्मान किया गया परन्तु शेष लोगों को जैसे-तैसे ही निपटा दिया गया / कुछ महत्वपूर्ण कार्यों को कर लिया परन्तु सामान्य कार्यों की उपेक्षा कर दी गयी।

Friday, September 26, 2014

ठठैरे री मिन्नी खड़के सूं थोड़ाइं डरै !

ठठैरे री मिन्नी खड़के सूं थोड़ाइं डरै !

शब्दार्थ :-  ठठैरे ( जो की धातु की चद्दर की पीट -पीट कर बर्तन बनाता है ) के वहां रहने वाली बिल्ली खटखट करने से डरकर नहीं भागती क्योंकि वह तो सदा खटखट सुनती रहती है।

भावार्थ :- किसी कठिन माहौल में रहने-जीने व्यक्ति के लिए वहां की कठिनाई आम बात होती हैं,वह उस परिस्तिथि से घबराता नहीं है।

कमाऊ आवे डरतो ,निखट्टू आवे लड़तो !

कमाऊ पूत आवै डरतो, अणकमाऊ आवै लड़तो। 

शब्दार्थ :- कमाने वाला बेटा तो घर में डरता हुआ प्रवेश करता है, लेकिन जो कभी नहीं कमाता वह लड़ाई झगडा करते हुए ही आता है।

भावार्थ :- परिवार में धनार्जन करने वाले व्यक्ति को हर समय अपने मान-सम्मान का ध्यान रहता है, लेकिन निखट्टू को अपनी बात मनवाने का ही ध्यान रहता है। 

ब्यांव बिगाड़े दो जणा , के मूंजी के मेह , बो धेलो खरचे न'ई , वो दडादड देय !

ब्यांव बिगाड़े दो जणा , के मूंजी के मेह ,
बो धेलो खरचे ' , वो दडादड देय !

शब्दार्थ :-विवाह को दो बातें ही बिगाड़ती  है, कंजूस के कम पैसा खर्च करे से और बरसात के जोरदार पाी बरसा देे से .

भावार्थ :-काम को सुव्यवस्थित करके लिए उचित खर्च करा जरुरी होता है,वहीँ प्रकृति का सहयोग भी आवश्यक है।

हूं गाऊँ दिवाळी'रा, तूं गाव़ै होळी'रा ।

हूं गाऊँ दिवाळी'रा, तूं गाव़ै होळी'रा ।


शब्दार्थ :- मैं दिवाली के गीत गाता हूँ और तू होली के गीत गाता है।

भावार्थ:- मैं यहाँ किसी प्रसंग विशेष पर चर्चा कर रहा हूँ और तुम असंबद्ध बात कर रहे हो।

म्है भी राणी, तू भी राणी, कुण घालै चूल्हे में छाणी ?

म्है भी राणी, तू भी राणी, कुण घालै चूल्हे में छाणी?

शब्दार्थ :- मैं भी रानी हूँ और तू भी रानी है तो फिर चूल्हे को जलाने के लिए उसमें कंडा/उपला कौन डाले ?
भावार्थ :- अहम या घमण्ड के कारण कोई भी व्यक्ति अल्प महत्व का कार्य नहीं करना चाहता है।

मढी सांकड़ी,मोड़ा घणा !

मढी सांकड़ी,मोड़ा घणा !

शब्दार्थ:-मठ छोटा है और साधु बहुत ज्यादा हैं।  (मोडा =मुंडित, साधु)

भवार्थ:- जगह/वस्तु अल्प मात्रा में है,परन्तु जगह/वस्तु के परिपेक्ष में उसके हिस्सेदार ज्यादा हैं।

Thursday, September 25, 2014

आप री गरज गधै नेै बाप कहवावै!

आप री गरज गधै नेै बाप कहवावै!

शब्दार्थ:-
अपनी जरुरत/अपना हित गधे को बाप कहलवाती है।

भावार्थ :-स्वार्थसिद्धि के लिए अयोग्य/ कमतर व्यक्तित्व वाले आदमी की भी खुशामद करनी पड़ती है।

Friday, September 19, 2014

चिड़ा-चिड़ी री कई लड़ाई, चाल चिड़ा मैँ थारे लारे आई |

चिड़ा-चिड़ी री कई लड़ाई, चाल चिड़ा मैँ थारे लारे आई |

 शब्दार्थ:-चिड़िया व चिड़े की कैसी लड़ाई,चल चिड़ा मैं तेरे पीछे  आती हूँ।

 भावार्थ :- पति-पत्नी के बीच का मनमुटाव क्षणिक होता है।

चाए जित्ता पाळो , पाँख उगता ईँ उड़ ज्यासी |

चाए जित्ता पाळो , पाँख उगता ईँ उड़ ज्यासी |

शब्दार्थ:-पक्षी के बच्चे को कितने ही लाड़–प्यार से रखो,वह पंख लगते ही उड़ जाता है।

भावार्थ :- हर जीव या वस्तु उचित समय आने पर अपनी प्रकृति के अनुसार आचरण अवश्य  करते ही हैं।

पड़ै पासो तो जीतै गंव़ार !

पड़ै पासो तो जीतै गंव़ार !

शब्दार्थ :- पासा अनुकूल पड़े,तो गंवार भी जीत जाता है. (चौसर के खेल में सब कुछ दमदार पासा पड़ने पर निर्भर करता है, उसमें और अधिक चतुराई की आवश्यकता नहीं होती है)

भावार्थ:- भाग्य अनुकूल हो तो अल्प बुद्धि वाला भी काम बना लेता है, नहीं तो अक्लमंद की भी कुछ नहीं चलती।

Saturday, September 13, 2014

नागां री नव पांती अ'र सैंणा री एक।

नागां री नव पांती अ'र सैंणा री एक।

शब्दार्थ :- उदण्ड/स्वछन्द व्यक्ति को किसी चीज के बंटवारे में नौ हिस्से चाहिए.

भावार्थ:- उदण्ड/स्वछन्द व्यक्ति किसी साझा हिस्से वाली चीज़ या संपत्ति में से अनुचित हिस्सेदारी लेना चाहता है जबकि सज्जन व्यक्ति अपने हक़ के ही हिस्से से ही संतुष्ठ रहता है.


कार्तिक की छांट बुरी , बाणिये की नाट बुरी , भाँया की आंट बुरी , राजा की डांट बुरी।

कार्तिक की छांट बुरी , बाणिये की नाट बुरी ,
भाँया की आंट बुरी , राजा की डांट बुरी।

अर्थ - कार्तिक महीने की वर्षा बुरी , बनिए की मनाही , भाइयों की अनबन बुरी और राजा की डांट-डपट बुरी।

आळस नींद किसान ने खोवे , चोर ने खोवे खांसी , टक्को ब्याज मूळ नै खोवे , रांड नै खोवे हांसी।

आळस नींद किसान ने खोवे , चोर ने खोवे खांसी ,
टक्को ब्याज मूळ नै खोवे , रांड नै खोवे हांसी।

अर्थ - किसान को निद्रा व आलस्य नष्ट कर देता है , खांसी चोर का काम बिगाड़ देती है , ब्याज के  लालच से  मूल धन  भी है डूब जाता है और हंसी मसखरी विधवा को बिगाड़ देती है।

जाट र जाट, तेरै सिर पर खाट। मियां र मियां , तेरै सिर पर कोल्हू। 'क तुक जँची कोनी। 'क तुक भलांई ना जंचो , बोझ तो मरसी।

जाट र जाट, तेरै सिर पर खाट।
मियां र मियां , तेरै सिर पर कोल्हू।
'क तुक जँची कोनी।
'क तुक भलांई ना जंचो , बोझ तो मरसी। 


अर्थ - एक मियाँ  ने जाट से मजाक में कहा की जाट, तेरे सिर पर खाट। स्वभावतः जाट ने मियाँ से कहा की,मियाँ! तेरे सिर पर कोल्हू।मियाँ ने पुनः जाट से कहा की तुम्हारी तुकबंदी जँची नहीं तो जाट बोला की तुकबंदी भले ही न जँचे , लेकिन तुम्हारे सिर पर बोझ तो रहेगा ही।

कमाई करम की, इज्जत भरम की, लुगाई सरम की।

कमाई करम की, इज्जत भरम की, लुगाई सरम की।

अर्थ - कमाई भाग्य से होती है, जब तक भ्रम बना रहे तभी तक इज्जत है और जब तक शील संकोच बना रहता है तभी तक स्त्री, स्त्री है।

कदे 'क दूध बिलाई पीज्या, कदे 'क रहज्या काचो। कदे 'क नार बिलोवै कोनी, कदे 'क चूंघज्या बाछो।

कदे 'क दूध बिलाई पीज्या, कदे 'क रहज्या काचो।
कदे 'क नार बिलोवै कोनी, कदे 'क चूंघज्या बाछो।

शब्दार्थ:-घर में गायें  होने पर भी गृह स्वामी को कभी दूध दही नहीं मिल पाता। कभी दूध को बिल्ली पी जाती है, तो कभी वह कच्चा रह जाता है। कभी घर वाली बिलोना नहीं डालती तो कभी बछड़ा चूस जाता है।
 

भावार्थ :- साधनो के बावजूद योजना पूर्वक कार्य नहीं करने से कार्य सिद्धि में एक न एक बाधा उपस्थित होते रहती है ।

कुत्तो सो कुत्ते नै पाळे , कुत्तोँ सौ कुत्तोँ नै मारै। कुत्तो सो भैंण घर भाई , कुत्तोँ सो सासरे जवाँई। वो कुत्तो सैं में सिरदार , सुसरो फिरे जवाँई लार।

कुत्तो सो कुत्ते नै पाळे , कुत्तोँ सौ कुत्तोँ नै मारै।
कुत्तो सो भैंण घर भाई , कुत्तोँ सो सासरे जवाँई।
वो कुत्तो सैं में सिरदार , सुसरो फिरे जवाँई लार।

अर्थ - कुत्ते को पालना अथ्वा मारना दोनों ही बुरे है। यदि भाई अपनी बहन के घर और दामाद ससुराल में रहने लगे तो उनकी क़द्र भी कम होकर कुत्ते के समान हो जाती है। लेकिन यदि ससुर अपना पेट् भरने के लिए दामाद के पीछे लगा रहे तो वो सबसे गया गुजरा माना जाता है।

आडे दिन से बासेड़ा ई चोखो जिको मीठा चावळ तो मिले

आडे दिन से बासेड़ा ई चोखो जिको मीठा चावळ तो मिले

अर्थ - सामान्य दिन कि उपेक्षा 'बासेड़ा'[शीतला देवी का त्यौहार] ही अच्छा जो खाने के लिए मीठे चावल तो मिले।

राधो तू समझयों नई , घर आया था स्याम दुबधा में दोनूं गया , माया मिली न राम ………

राधो तू समझयों न'ई , घर आया था स्याम
दुबधा में दोनूं गया , माया मिली न राम !

अर्थ - दुविधा में दोनों ही चले गए , न माया मिली न राम
न खुदा ही मिला न विसाले सनम। ......

जीवते की दो रोटी , मरोड्ये की सो रोटी। …।

जीवते की दो रोटी , मरोड्ये की सो रोटी। …।

अर्थ - जीते हुए की सिर्फ दो रोटी और मरे हुए की सौ रोटियाँ लगती है। ....

खाट पड़े ले लीजिये , पीछै देवै न खील आं तीन्यां का एक गुण , बेस्यां बैद उकील। ……

खाट पड़े ले लीजिये , पीछै देवै न खील
आं तीन्यां का एक गुण , बेस्यां बैद उकील। ……

अर्थ - वैश्या अपने ग्राहक से और वैद्य अपने रोगी से खाट पर पड़े हुए ही जो लेले सो ठीक है, पीछे मिलने की उम्मीद न करे। …इसी प्रकार वकील अपने मुवक्किल से जितना पहले हथिया ले वही उसका hai....

कै मोड्यो बाँधे पाग्ड़ी कै रहै उघाड़ी टाट। …।


कै मोड्यो बाँधे पाग्ड़ी कै रहै उघाड़ी टाट। …।

बाबाजी बांधे तो सिर पर पगड़ी ही बांधे नहीं तो नंगे सिर ही रहे। .....

बाबाजी बांधे तो सिर पर पगड़ी ही बांधे नहीं तो नंगे सिर ही रहे। .....

कुम्हार गधे चढले , 'क कोनी चढू , पण फेर आपै ई चढले। …।

कुम्हार गधे चढले , 'क कोनी चढू , पण फेर आपै ई चढले। …।

जो मनुष्य बार बार कहने पर भी किसी काम को न करे , लेकिन फिर झख मार कर अपने आप करले .......

दांतले खसम को रोवते को बेरो पड़े ना हँसते को.......

दांतले खसम को रोवते को बेरो पड़े ना हँसते को.......

अर्थ - दंतुले [जिसके दांत बाहर दिखते हो] पति का कुछ पता नहीं चलता कि वह रो रहा है या हँस रहा है........

संगत बड़ा की कीजिये , बढत बढत बढ जाए बकरी हाथी पर चढी , चुग चुग कॊंपळ खाए !

संगत बड़ा की कीजिये , बढत बढत बढ जाए
बकरी हाथी पर चढी , चुग चुग कॊंपळ खाए ........

अर्थ - संगति हमेशा बड़ो की करनी चाहिए .. बकरी ने हाथी से संगति की तो हाथी ने उसे अपनी पीठ पर बैठा लिया और अब वह चुन चुन कर वृक्षों की हरी कोपले खा रही है.....

परनारी पैनी छुरी , तीन ठोर से खाय धन छीजे जोबन हडे , पत पञ्चां में जाय ......

परनारी पैनी छुरी , तीन ठोर से खाय
धन छीजे जोबन हडे , पत पञ्चां में जाय ......

अर्थ - परनारी से प्रेम करना पैनी छुरी के समान है ... वह धन और यौवन का हरण करती है और पंचो में प्रतिष्ठा गवां देती है......

दूर जंवाई फूल बरोबर , गाँव जंवाई आधो , घर जंवाई गधे बरोबर , चाये जिंया लादो.....

दूर जंवाई फूल बरोबर , गाँव जंवाई आधो ,
घर जंवाई गधे बरोबर , चाये जिंया लादो.....

अर्थ - दूर रहने वाला दामाद का अधिक सम्मान रहता है, गाँव वाले का आधा और घर जंवाई की क़द्र तो गधे के बराबर रह जाती है........

भलांई खीर बिगड्गी पण, राबड़ी से न्हाऊं कौनी !

भलांई खीर बिगड्गी पण, राबड़ी से न्हाऊं कौनी !

शब्दार्थ:- खीर यदि बिगड़ भी जाए तो राबड़ी से बुरी नहीं। 

भावार्थ :- कोई अच्छा/उच्च स्तर का काम न हो सका हो या अच्छी वस्तु  न मिल सके,तो भी स्तरहीन या निम्न गुणवत्ता वाला काम/वस्तु  से समझौता स्वीकार्य नहीं है।

रांड भांड न छेड़िए , पण्घट पर दासी I भूखो सिंह न छेड़िए , सुत्यो सन्यासी II

रांड भांड न छेड़िए , पण्घट पर दासी I
भूखो सिंह न छेड़िए , सुत्यो सन्यासी II

अर्थ - विधवा स्त्री , भांड , पनघट की दासी , भूखे सिंह एवं सोये हुए सन्यासी से कभी छेड़ छाड़ नहीं करनी चाहिए I

ज्यांका मर ग्या बादशा रुळता फिरे वज़ीर !

ज्यांका मर ग्या बादशा रुळता फिरे वज़ीर !
शब्दार्थ :- जिनके बादशाह या प्रमुख की मृत्यु हो गयी,उनके अनुयायी /कनिष्ठ लोग मारे-मारे फिरते हैं।

भावार्थ :-  जब किसी प्रभावशाली व्यक्ति का किन्ही लोगों पर वरद्हस्त हो,और उस प्रभावशाली व्यक्ति की मृत्यु हो जाये या वो सत्ता पर न रहे तो उसके अनुयायी/कनिष्ठ लोगों का प्रभाव या रुतबा भी नष्ट हो जाता है !

आज ही मोडियो मूंड मुडाया अर आज ही ओळा पड्या !

आज ही मोडियो मूंड मुडाया अर आज ही ओळा पड्या.........

अर्थ - आज ही बाबाजी ने सिर मुंडवाया और आज ही ओले पड़े........

आंधे की गफ्फी , बोळे को बटको , राम छुटावे तो छूटे , नहीं सिर ही पटको ......


आंधे की गफ्फी , बोळे को बटको ,
राम छुटावे तो छूटे , नहीं सिर ही पटको ......

 

अर्थ - अंधे के हाथों और बहरे के दाँतों की पकड़ सहज ही नहीं छूटती.........

आंधे की माखी राम उड़ावे .....

आंधे की माखी राम उड़ावे ........

अर्थ - असहाय का मालिक इश्वर है. वही उसकी सहायता और मदद करता है...

मियांजी जीता रैसी तो फजीती और घणी ई हो ज्यासी .............

मियांजी जीता रैसी तो फजीती और घणी ई हो ज्यासी .............

अर्थ - मियांजी की फजीती [फजीहत ] नामक लड़की मर गयी तो 'फजीती' की माँ रोने लगी ...इस पर पड़ोसिन ने उसे आश्वस्त करते हुए कहा कि रोटी क्यों हो? मियांजी जीते रहेंगे तो 'फजीती' [फजीहत] और बहुत होगी........

ब्यांव बिगाड़े दो जणा , के मूंजी के मेह , बो धेलो खरचे न'ई , वो दडादड देय !

ब्यांव बिगाड़े दो जणा , के मूंजी के मेह ,
बो धेलो खरचे न'ई , वो दडादड देय !
 

शब्दार्थ :-विवाह को दो बातें ही बिगाड़ती  है, कंजूस के कम पैसा खर्च करने से और बरसात के जोरदार पानी बरसा देने से .

भावार्थ :-काम को सुव्यवस्थित करने के लिए उचित खर्च करना जरुरी होता है,वहीँ प्रकृति का सहयोग भी आवश्यक है।

अण मांगी दूध बरोबर , मांगी मिले सो पाणी , वा भिच्छा है रगत बरोबर , जीं में टाणा टानी........

अण मांगी दूध बरोबर , मांगी मिले सो पाणी ,
वा भिच्छा है रगत बरोबर , जीं में टाणा टानी........

अर्थ - बिना मांगे जो भिक्षा मिले वह दूध के समान [सात्विक] , जो मांगने पर मिले वह पानी के समान और जो भिक्षा खींच तान करके प्राप्त की जाय वह रक्त के तुल्य होती होती.
......

धोबी के लाग्या चोर , डूब्या और इ और ......

धोबी के लाग्या चोर , डूब्या और इ और ......

अर्थ - धोबी के यहाँ चोरी हुई तो तो दूसरे लोगों का ही नुक्सान हुआ ...........
धोबी के यहाँ जो कपड़े धुलने आते है , वे दुसरो के ही होते है .....
रांड भांड न छेड़िए , पण्घट पर दासी I
भूखो सिंह न छेड़िए , सुत्यो सन्यासी II


अर्थ - विधवा स्त्री , भांड , पनघट की दासी , भूखे सिंह एवं सोये हुए सन्यासी से कभी छेड़ छाड़ नहीं करनी चाहिए I

सती सराप देवे नी , छिनाल रो सराप लागे नी !

सती सराप देवे नी , छिनाल रो सराप लागे नी !

शब्दार्थ:- अपनी महानता के कारण सती तो श्राप देती नहीं है और छिनाल का श्राप फलित नहीं होता है । 

भावार्थ :- अच्छे व्यक्ति किसी का बुरा नहीं करते हैं और बुरे व्यक्ति अगर कसी का अनिष्ट चाहता है तो भी बुरा होता नहीं है।  अतः किसी बुरे फल की नाहक चिंता नहीं करनी चाहिए।

राबड़ी रांड ई कैवे,के म्हनै दांतां सें खावो।

राबड़ी रांड ई कैवे , के म्हनै  दांतां सें खावो।

शब्दार्थ:-राबड़ी को दांतों से चबाने की आवश्यकता नहीं पड़ती , लेकिन वह भी कहती है की मुझे दांतों से चबा कर खाओ।
भावार्थ :-कोई कमतर महत्त्व का आदमी विशेष सम्मान प्राप्त करना चाहता है। 

घर से उठ बन में गया अ'र बन में लगी लाय !

घर से उठ बन में गया अ'र बन में लागी लाय !

शब्दार्थ:- व्यक्ति घर से ऊब कर जंगल में गया,परन्तु वहां भी आग लग गयी।
 
भावार्थ :- अभागे व्यक्ति को कहीं सुख नहीं मिलता है।

जाण मारै बाणियों , पिछाण मारै चोर !

जाण मारै बाणियों , पिछाण मारै चोर !
शब्दार्थ:-  बनिया ग्राहक की गरज को समझ कर अधिक ठगता  है और चोर पूरी जानकारी लेकर चोरी करता
है । 

भावार्थ :- बनिया ग्राहक की आवश्यकता को भाँपकर वस्तु का मुल्य अधिक वसूलता है,जबकि चोर को जहाँ चोरी करनी होती ,वहां का भेद प्राप्त करने के बाद ही चोरी करता है।

आप मरयां जग परलै !

आप मरयां जग परलै !

शब्दार्थ:- स्वयं मरने के बाद,जैसे जगत में प्रलय हो जाता है।

भावार्थ :- मनुष्य मर गया तो उसके लिए संसार मर गया, बाद में संसार रहे चाहे न रहे,इस बात से उसे क्या अंतर पड़ता है ?

Tuesday, September 9, 2014

आप न जाव़ै सास रै,औरां ने सीख देय !

आप न जाव़ै सास रै,औरां ने सीख देय  !

शब्दार्थ:-
स्वयं तो ससुराल नहीं जाती है लेकिन दूसरों को जाने की शिक्षा देती है।

भावार्थ :-
दूसरों को उपदेश तो देते हैं कि उनको क्या करना चाहिए परन्तु स्वयं उस सलाह पर नहीं चलते हैं ।

नहिं बेली रो राम बेली !

नहिं बेली रो राम बेली !

शब्दार्थ:-जिसका कोई सखा नहीं है, उसका सखा राम होता है .
भावार्थ :- जिसकी कोई सहायता नहीं करता है उसकी सहायत परमात्मा करता है।

Monday, September 8, 2014

आपरी खा’यर परायी तक्कै, जाय हड़मान बाबै'रे धक्कै।

आपरी खा’यर परायी तक्कै, जाय हड़मान बाबै'रे धक्कै।

 
शब्दार्थ:- जो आदमी अपनी रोटी खाकर परायी को भी लेना चाहता है वह
हनुमानजी के धक्के चढ़ता है।

भावार्थ :-
जो स्वयं की मेहनत का फल पाने के बाद भी संतोष नहीं करता है और छल-कपट से दूसरे का हक छीनना चाहता है,उसको मुसीबत का सामना करना पड़ता है।

बकरा की माँ कित्ता थाव़र टाळसी ।

बकरा की माँ कित्ता थाव़र टाळसी ।

शब्दार्थ:- बकरे की माँ कितने शनिवार टाल सकती है।

भावार्थ :- आसन्न विपत्ति को कुछ समय के लिए तो टाला जा सकता है,परन्तु समाप्त नहीं किया जा सकता है।

करंता सो भुगंता, खुणंता सो पड़ंता .

करंता सो भुगंता, खुणंता सो पड़ंता .
शब्दार्थ:- जो करता है सो भोगता है, जो दूसरे के लिए खाई खोदता है वह
स्वयं पड़ता है।

भावार्थ :-अपनी करनी का फल भोगना ही पड़ता है।

आप मिलै सो दूध बराबर, मांग मिलै सो पाणी।

आप मिलै सो दूध बराबर, मांग मिलै सो पाणी।

शब्दार्थ:- जो स्वयं बिना मांगे मिले वह दूध के समान होता है और जो मांगने से
मिले वह पानी के समान होता है।

भावार्थ :- जो श्रम से अथवा सम्मान से अर्जित किया जाता है वो सुखद एवं कीर्ति बढ़ने वाला होता है और जो मांग कर,हट्ट करके लिया जाये निस्तेज और कमतर होता है।

कनै कोडी कोनी, नांव किरोड़ीमल।

कनै कोडी कोनी, नांव किरोड़ीमल
 


शब्दार्थ:- स्वयं के पास में कौड़ी नहीं है लेकिन ऐसे व्यक्ति का नाम करोड़ीमल है।

भावार्थ :-
नाम या ख्याति के अनुरूप किसी के पास धन वैभव ना हो अथवा किसी जगह /वस्तु में  नाम के अनुसार गुण न हो।

आम फळे नीचो तुळै,अेरंड अकासां जाय।

आम फळे नीचो तुळै,अेरंड अकासां जाय।

शब्दार्थ:-आम फलता है तो नीचे झुकता है, ऐरंड आकाश की ओर जाता है।

भावार्थ :-धीर-गंभीर व्यक्तित्व वाले आदमी संपत्ति या प्रभुता पाकर नम्र हो जाते हैं जबकि छिछले और उच्छृंकल  व्यक्तित्व वाले आदमी इतराने लगते हैं।

Monday, September 1, 2014

नागा रो लाय में कांई बळै ?

नागा रो लाय में कांई बळै ?

शब्दार्थ:-अगर कहीं आग लग जाये तो उदण्ड/स्वछन्द व्यक्ति का  (यहाँ ऐसा अर्थ की जिस का हानि-लाभ में कुछ भी हिस्सा न हो ) उस आग में क्या जल जायेगा ?

भावार्थ :- ऐसे व्यक्ति की किसी निहित कार्य में क्या हानि हो सकती  है ? जिसका उस जगह पर कुछ है ही नहीं।

नाई री जान में सैंग ठाकर।

नाई री जान में सैंग ठाकर।

शब्दार्थ:- नाई की बारात में आये हुए सब लोग ठाकुर जाति के(उच्च कुल /जाति के) हैं।

भावार्थ :- निर्बल या कम सक्षम व्यक्ति के हितार्थ काम में कोई भी सहयोग करने को राजी नहीं है।

मिन्नी रो तो रोळ व्हे ,अर उंदरा रो घर भांगे।

मिन्नी रो तो रोळ व्हे ,अर उंदरा रो घर भांगे।

शब्दार्थ:- बिल्ली के  खेल-खेल में चूहे का बिल टूट जाता है।

भावार्थ :- समर्थ और सक्षम व्यक्ति का ऐसा व्यहवहार जिसमें उसको तो आनंद मिले परन्तु निर्बल व्यक्ति का बहुत अधिक नुक्सान हो जाये।

दाई सुं पेट थोड़ो'ई छानों रेवै !

दाई सुं पेट थोड़ो'ई छानों रेवै !

शब्दार्थ:- दाई से पेट नहीं छुपाया जा सकता है।

भावार्थ :- अनुभवी व्यक्ति से किसी बात का भेद छुपाया नहीं जा सकता है।

लाडू री कोर में कुण खारो,कुण मीठो ?

लाडू री कोर में कुण खारो,कुण मीठो ?

शब्दार्थ:-लड्डू की ग्रास में कौनसा भाग खारा और कौनसा भाग मीठा ?

भावार्थ :- बगैर पक्षपात के सभी के साथ समान व्यहवार करना, सबको एक समान मानना।