Sunday, December 14, 2014

आज री थेप्योड़ी आज कौनी बळे !

आज री थेप्योड़ी आज कौनी बळे !शब्दार्थ :- आज के पाथे हुए ( गोबर के ) कंडे आज नही जलते |

भावार्थ :- कोई भी कार्य को होने में कुछ समय लगता है, जिसके लिए धीरज रखने की अावश्यकता होती है।

धापी थारी छाछ सूं, कुत्ता सूं छुड़ाव !

धापी थारी छाछ सूं, कुत्ता सूं छुड़ाव !
शब्दार्थ :-तेरी छाछ से तौबा, मुझे तेरे कुत्तों से छुड़ा दे ।

भावार्थ :- दूसरे से अपना काम निकलवाने गए,परन्तु वहाँ तो उल्टा मुसीबत गले में पड़े गयी ।

Friday, December 12, 2014

टुकड़ा दे दे बछड़ा पाल्या, सींग हुया जद मारण चाल्या।

टुकड़ा दे दे बछड़ा पाल्या, सींग हुया जद मारण चाल्या।

शब्दार्थ :- बछड़े को पाल-पोष कर बड़ा किया, लेकीन बड़ा हो जाने पर मारने का प्रयास करने लग गया

भावार्थ :-जिनको प्रयास कर जिनको आगे बढ़ाया,वो ही बड़े हो जाने पर पालक को ही क्षति पहुचने लग गए।

काणती (काणी) भेड़ को न्यारो ही गवाड़ो !

काणती (काणी) भेड़ को न्यारो ही गवाड़ो !

शब्दार्थ :-
– कानी अर्थात जिसकी एक आँख न हो ऐसी भेड़ की बस्ती अल होती है।

भावार्थ :-निकृष्ट व्यक्तियोँ को जब विशिष्ट लोगोँ मेँ स्थान प्राप्त नहीं हो पाता है तो,वे अपना समूह  अलग ही बना लेते हैँ।

आधी छोड़ पूरी नै धावे,आधी मिळे न पूरी पावै !

आधी छोड़ पूरी नै  धावे,आधी मिळे न पूरी पावै !

शब्दार्थ :- आधी को छोड़कर,पूरी पाने के पीछे भागने पर,पूरी तो मिलती नहीं है लेकिन आधी भी चली जाती है।

भावार्थ :- जो प्राप्त हो गयी हो ऐसी आधी चीज का संतोष न मानकर,पूरी पाने का प्रयास करता है,उसे पूरी तो मिले न मिले लेकिन मिली हुई चीज भी हाथ से चली जाती है।

Tuesday, December 9, 2014

छदाम को छाजलो, छै टका गंठाई का।

छदाम को छाजलो, छै टका गंठाई का।
शब्दार्थ :-छदाम (
सिक्के का एक मान जो छः दामों अर्थात् पुराने पैसे के चौथाई भाग के बराबर होता था ) का सूपड़ा लेकिन उसको बनवाने का दाम छह सिक्कों जितना।
भावार्थ :-  किसी वस्तु की वास्तविक कीमत तो कम हो,परन्तु उसको उपयोग लेने लायक बनाने की कीमत कई गुना ज्यादा लगे ।

Sunday, December 7, 2014

बगल में छोरो, गांव़ में ढींढोरौ !

बगल में छोरो, गांव़ में ढींढोरौ !

शब्दार्थ :- लड़का अपने पास ही हो और लडके को ढूंढने के लिए गांव में ढिंढोरा पीटना !

भावार्थ :- कोई चीज अपने पास ही मौजूद हो,लेकिन उसे हर तरफ ढूंढना।

Saturday, December 6, 2014

कागद री हांडी चूल्है चढै कोनी !

कागद री हांडी चूल्है चढै कोनी !

शब्दार्थ :- 
कागज की हंडिया चूल्हे पर नहीं चढ़ती।

भावार्थ :- बेईमानी से किया हुआ कार्य सफल नहीं होता है।

नौकरी रे नकारे रो बैर है !

नौकरी रे नकारे रो बैर है !
शब्दार्थ :-
नौकरी के और नकार(मनाही ) में बैर है !
भावार्थ :-
नौकर मालिक की बात से मना नहीं कर सकता,मालिक की बात को न करने से नौकरी नहीं हो सकती है।

Thursday, December 4, 2014

करणी जिसी भरणी !

करणी जिसी भरणी !

शब्दार्थ :- जैसा कर्म,वैसा प्रतिफल !

भावार्थ :- जैसा कार्य करेंगे ,फल भी उसी प्रकार का प्राप्त होगा ।

अणमांग्या मोती मिलै, मांगी मिलै न भीख।

अणमांग्या मोती मिलै, मांगी मिलै न भीख।

शब्दार्थ :- बगैर मांगे मोती मिल जाता है,जबकि मांगने से भीख भी नहीं मिलती है।
भावार्थ :- मांगे बगैर भी कोई मुल्यवान चीज़ मिल जाती है जबकि कई बार मांगने पर भी तुच्छ वस्तु हांसिल नहीं होती है,वरन आत्मसम्मान को भी ठेस पहुंचती है।

कठैई जावो पईसां री खीर है !

कठैई जावो पईसां री खीर है !

शब्दार्थ :- कहीं भी चले जाएँ,पैसें की ही खीर है।

भावार्थ :- हर जगह पर पैसे का ही महत्त्व है।

मन'रै हरयाँ हार है, मन'रै जीत्यां जीत !

मन'रै हरयाँ हार है, मन'रै जीत्यां जीत !

शब्दार्थ :- सफलता और असफलता मन पर ही निर्भर है,अगर मन से ही हार मान लें तो जीत नहीं मिल सकती है ।

भावार्थ :- मन में सफलता की आशा हो तो ही सफलता मिलती है और मन ही हिम्मत हार जाये तो असफलता निश्चित है।

Saturday, November 29, 2014

काकड़ी रा चोर ने मुक्की री मार !

काकड़ी रा चोर ने मुक्की री मार ! 

शब्दार्थ :- ककड़ी की चोरी करने वाले को,केवल मुक्के के मार की ही सज़ा।

भावार्थ :- छोटे या साधारण अपराध का साधारण दंड ही दिया जाता है।

Monday, November 24, 2014

कदेई बड़ा दिन,कदेई बड़ी रात !

कदेई बड़ा दिन,कदेई बड़ी रात !
शब्दार्थ :- कभी दिन बड़े होते हैं तो कभी रात बड़ी हो जाती है।
भावार्थ :- 1.संसार सदा परिवर्तनशील है, समय हमेशा एक समान नहीं रहता।
             2.कभी किसी एक का दांव चल जाता है तो कभी किसी दूसरे का,हर बार किसी का समय  एक  जैसा    नहीं रह पाता है।

बावौ कठैई , अर ऊगै कठेई !

बावौ कठैई , अर ऊगै कठेई ! 

शब्दार्थ :- बोया कहीं और गया था,लेकिन उग गया कहीं दूसरी जगह पर !
भावार्थ :- अस्थिर मनोस्थिति वाले व्यक्ति एक जगह या एक बात पर पर टिक नहीं सकते हैं,वे अपना स्थान या अपना मत बदलते रहते हैं।

जबरो मारै’र रोवण कोनी दै !

जबरो मारै’र रोवण कोनी दै !

शब्दार्थ :- कोई व्यक्ति जोरदार मारता है या किसी और प्रकार से चोट पहुंचता है,परन्तु रोने नहीं देता या उसका दुःख भी प्रकट नहीं करने देता है।
भावार्थ :- कोई व्यक्ति या संस्थान अपने अधिकारों या बल का प्रयोग करते हुए किसी को हानि पहुंचाता है और सामने वाले को उस बात का प्रतिकार करने या दुःख प्रकट करने का भी मौका न दे। 

Sunday, November 23, 2014

आँधा की माखी राम उड़ावै !

आँधा की माखी राम उड़ावै !

शब्दार्थ :-  दृष्टिहीन व्यक्ति पर मंडराती मक्खी भगवान उडाता है। 

भावार्थ :-  जिसका कोई सहारा नहीं होता है,उसका सहारा भगवान होता है।

Saturday, November 22, 2014

बकरी रोव़ै जीव़ नै,खटीक रोव़ै खाल नै !

बकरी रोव़ै जीव़ नै,खटीक रोव़ै खाल नै !

शब्दार्थ :-बकरी अपनी जान चली जाने के डर से रोती है,जबकि खटीक (चमड़े का व्यापार करने वाली जाती के लोग) को बकरी की खाल की चिंता है।

भावार्थ :- सबको अपने-अपने स्वार्थ का ध्यान है; सबको अपने लाभ की चिंता है,पर इस और किसी का ध्यान नहीं है की, इस स्वयं के लाभ के पीछे दूसरे पक्ष की कितनी हानि है।

Friday, November 21, 2014

उछाल भाठो करम में क्यूँ लेवणो ?

उछाल भाठो करम में क्यूँ लेवणो ?

शब्दार्थ :- पत्थर को उछाल कर उसे अपने सर पर क्यूँ लेना ?

भावार्थ :- आफत को स्वयं अपनी ओर से  सिर पर नहीं लेना चाहिये।

Thursday, November 20, 2014

कमावै तो वर, नहीं जणै माटी रो ही ढल !

कमावै तो वर, नहीं जणै माटी रो ही ढल !

शब्दार्थ :-कमाई करता है तो पति है,नहीं तो मिटटी के ढेले के सामान है।

भावार्थ :- धन-अर्जन करता है या कमाई करता है तो पति कहलाने के लायक है,नहीं तो वह मिटटी के ढेले के सामान है।

माटी री भींत डिंगती बार कोनी लगावै !

माटी री भींत डिंगती बार  कोनी लगावै !

शब्दार्थ :- मिट्टी से बनाई हुई दिवार गिरने में ज्यादा समय नहीं लगाती है ।

भावार्थ :- आधे-अधुरे मन से या अपुष्ट संसाधनो से किया हुआ कार्य नष्ट होते देर नहीं लगती है ।

विणज किया था जाट ने सौ का रहग्या तीस !

विणज किया था जाट ने सौ का रहग्या तीस !

शब्दार्थ :- जाट ने सौ रूपया का मूल धन लगा कर व्यापर आरम्भ किया था,पर उसे व्यापर में हानि हुई  और उसका सौ रूपया घाट कर मात्र तीस रूपया रह गया।

भावार्थ :- कार्य वही करना चाहिए जिस के बारे में ज्ञान हो क्योंकि अपूर्ण ज्ञान से किया हुआ कार्य लाभ के स्थान पर हानि पहुंचाता  है।

पाड़ोसी रै बरस'सी तो छांटा तो अठै ई पड़सी !

पाड़ोसी रै बरस'सी तो छांटा तो अठै ई पड़सी !
शब्दार्थ :- पड़ोसियों के यहाँ बारिश होगी तो कुछ बुंदे तो हमारे घर पर भी गिरेगी !

भावार्थ :- अगर हमारे पड़ोसियों के यहाँ सम्पन्नता होगी, उसका कुछ लाभ तो हमें भी प्राप्त होगा ।

Sunday, November 16, 2014

हाथ ई बाळया, होळा ई हाथ कोनी आया !

हाथ ई बाळया, होळा ई हाथ कोनी आया !

शब्दार्थ :- होले (गीले हरे चने) को भुनने का प्रयास किया,पर उस प्रयास में हाथ जल गए।

भावार्थ :- मेहनत की,कष्ट भी सहा, लेकिन प्रतिफल स्वरुप लाभ के स्थान पर हानि हुई। 

Saturday, November 15, 2014

जिस्या ने विस्या ही मिळ्या,ज्यां बामण नै नाई। बो दिवी आसकां, बो आरसी दिखाई॥

जिस्या ने विस्या ही मिळ्या,ज्यां बामण नै नाई। बो दिवी आसकां, बो आरसी दिखाई॥

शब्दार्थ :- एक प्रकार के आचार-व्यहवार वाले को उसी के जैसा मिल गया, जैसे की ब्राह्मण को नाई।एक अगर आसकां (हवन की राख) देता है, तो दुसरा कांच दिखा देता है ।

भावार्थ :- जैसे को तेसा ही मिलता है, कोई काम करवाने के बदले अगर एक कुछ नहीं देता है, दुसरा भी काम मुफ्त में करवा लेता है ।

मिनख कमावै च्यार पहर, ब्याज कमावै आठ पहर ।

मिनख कमावै च्यार पहर, ब्याज कमावै आठ पहर ।

शब्दार्थ :- व्यक्ति काम कर के एक दिन में चार प्रहर (लगभग आधा दिन) कमाता है,जबकि ब्याज का चक्र पुरे समय चलता रहता है।            

भावार्थ :-व्यक्ति के एक दिन में काम करने की एक सीमा होती है,जबकि ब्याज का कुचक्र हर समय चलता रहता है,अतः जब तक हो सके ब्याज को लेकर सतर्क रहना चाहिए।

Thursday, November 13, 2014

रोयां राबड़ी कुण घालै !

रोयां राबड़ी कुण घालै !

शब्दार्थ :- रोने मात्र से राबड़ी कौन खिलाता है ?

भावार्थ :- परिश्रम से सफलता प्राप्त होती है, लक्षय मात्र चिंता करने से या मांगने से प्राप्त नहीं हो सकता है।

मतलब री मनुहार जगत जिमावै चूरमा !

मतलब री मनुहार जगत जिमावै चूरमा !

शब्दार्थ :- स्वार्थ साधने के लिए मनुहार करके यह संसार भोजन/व्यंजन खिलाता  है।

भावार्थ :- स्वार्थ सिद्धि के लिए कुछ लोग अपने स्वाभिमान को नजर अंदाज़ करते हुए किसी की चापलूसी करने लगते हैं। 

Tuesday, November 11, 2014

कथनी सूं करणी दोरी !

कथनी सूं करणी दोरी !
शब्दार्थ :-  कहना आसान है जबकि काम करना दुस्कर होता है।

भावार्थ :- किसी काम की बात को कहना आसान है,क्योंकि बात को कहने में  किसी प्रकार का श्रम नहीं लगता है,जबकि जबकि काम को करना अपेक्षाकृत दुस्कर होता है,क्योंकि किसी कार्य करने के लिए कार्य योजना,श्रम एवं धन लगता है।

चतर री च्यार घड़ी मूरख रो जमारो !

चतर री च्यार घड़ी मूरख रो जमारो !

शब्दार्थ :- चतुर व्यक्ति के लिए चार घड़ी (थोड़ा सा समय ) ही काफी है जबकि मूर्ख का पूरा जीवन भी काम पड़ जाता है।

भावार्थ :- चतुर थोड़े समय ही में जिस काम को कर लेता है,मुर्ख व्यक्ति उसको उम्र भर नहीं कर सकाता।

थूक सूं गांठयोड़ा,किता दिन संधै?

थूक सूं गांठयोड़ा,किता दिन संधै?

शब्दार्थ :- थूक से चिपकाये हुए कितने दिन तक जुड़े हुए रह सकते हैं ?

भावार्थ :- तात्कालिक उप से किया हुआ कार्य अधिक समय के लिए टिकाऊ नहीं हो सकता है।

धीरां रा गांव बसै,उतावळां रा देवळयां हुवै !

धीरां रा गांव बसै,उतावळां रा देवळयां हुवै !

शब्दार्थ :-धैर्यशाली लोगों के नाम से गांव बसा जाते हैं जबकि उतावली करने वालों के सिर्फ स्मारक बनाते हैं।

शीघ्रता से युद्ध में उतरने वाले के केवल स्मारक ही रहते हैं और धैय्र्य वळां
और युद्ध चातुय्र्य वाले पुरुष गांव बसा सकते है।

भावार्थ :- धैर्य औए चातुर्यपूर्वक कार्य करने वालों को सफलता मिलती है,जबकि केवल जोश से,बिना कार्य योजना से काम करने वालों को असफलता का सामना करना पड़ता है। 

साँच कहवे थी मावडी, झूठ कहवे था लोग। खारी लागी मावडी, मीठा लाग्या लोग॥

साँच कहवे थी मावडी, झूठ कहवे था लोग। खारी लागी मावडी, मीठा लाग्या लोग॥

शब्दार्थ :- माँ सच बोल रही थी जबकि लोग झूठ बोल रहे थे। लोग प्रिय लग रहे थे जबकि माँ अप्रिय लग रही थी। 

भावार्थ :- माँ अपने बच्चों की भलाई के लिए सत्य बोलती है परन्तु वो सच मनवांछित नहीं होता इस कारन से कड़ुआ लगता है,जबकि पराये लोग जो अच्छा लगे वैसा ही बोलते हैं,फिर चाहे वो झूठ  ही हो।

Wednesday, November 5, 2014

आया था हर भजन कर'णे,ओटण लाग्या कपास !

आया था हर भजन कर'णे,ओटण लाग्या कपास !
शब्दार्थ :- भगवान का भजन करने को आये थे,परन्तु कपास ओटने लगे।

भावार्थ :- जो सद्कार्य करना आरम्भ किया था उसे तो भूल गए लेकिन उसे छोड़कर कुछ दूसरा काम ही करने लगे।।

Tuesday, November 4, 2014

बांबी कुट्यां सांप थोड़ो ही मरै !

बांबी कुट्यां सांप थोड़ो ही मरै !

शब्दार्थ :-केवल बांबी को पीटने से सांप नहीं मरता है।

भावार्थ :- किसी कठिनाई को मात्र बाहरी उपचार से समाप्त नहीं किया जा सकता है ।

Sunday, November 2, 2014

माया सूं माया मिलै कर–कर लांबा हाथ !

माया सूं माया मिलै कर–कर लांबा हाथ !

शब्दार्थ :- धन संपन्न व्यक्ति का उसी प्रकार के वैभवशाली व्यक्ति से  मिलन अधिक अंतरंगता से होता है ।

भावार्थ :- साधन संपन्न लोगों का,मेल- जोल समान स्तर क़े लोगों से अधिक नजदीकी से होता है ।

मामैरो ब्यांव़ माँ पुुरसगारी, जीमो बेटा रात अंधारी !

मामैरो ब्यांव़,माँ  पुुरसगारी, जीमो बेटा रात अंधारी !

शब्दार्थ :-  मामा का विवाह,माँ भोजन परोसनेवाली और अंधेरी रात है, तो बस फिर और क्या चाहिए,बेटा ! भरपेट खाना खाओ !

भावार्थ :- जिस चीज की आपको आवश्यकता हो,उसे देने वाला ही आपका कोई नजदीकी हो, समय और परिस्तिथियाँ भी अनुकूल हों तो फिर मनचाहा काम होना ही है।

Friday, October 31, 2014

थाळी फूट्यां ठीकरो ई हाथ में आया करै !

थाळी फूट्यां ठीकरो ई हाथ में आया करै !

शब्दार्थ :-थाली टूट जाने पर उसका ठीकरा (टुकड़ा )ही हाथ लगता है।

भावार्थ :- अच्छी वस्तु/आपसी तालमेल में व्यवधान आने से या टूटने के परिणाम स्वरुप अंततः सभी हिस्सेदारों के हाथ उसका छोटा या कम उपयोगी भाग ही आता है।

पांचूं आंगळयां सरीसी कोनी हुव़ै !

पांचूं आंगळयां सरीसी कोनी हुव़ै !

शब्दार्थ :-आकार-प्रकार में पांचों उंगलियां एक  समान नहीं होती है।

भावार्थ :- सब आदमी या सब चीजें बराबर नहीं होती हैं,गुण-दोषों के  आधार पर प्रकृति ने भी  सबको अलग-अलग बनाया जरूर है,परन्तु कोई भी आदमी या चीज अनुपयोगी नहीं है।

Thursday, October 30, 2014

काम करे ऊधोदास, जीम जावे माधोदास !

काम करे ऊधोदास, जीम  जावे माधोदास !

शब्दार्थ :- ऊधोदास काम करता है और माधोदास खा जाता है !

भावार्थ :- कोई एक व्यक्ति की मेहनत से किये हुए काम का श्रेय कोई दूसरा व्यक्ति ले लेता है .

Wednesday, October 29, 2014

थोथो शंख पराई फूँक सै बाजै !

थोथो शंख पराई फूँक सै बाजै !

शब्दार्थ :- खोखला शंख किसी के द्वारा फूँक मारने से ही बजता है।

भावार्थ :- जिस व्यक्ति मेँ स्वयं मेँ कोई गुण नहीँ होता है,वह दूसरोँ का अनुसरण ही करता है स्वयं कोई निर्णय नहीं कर पाता  है।

Monday, October 27, 2014

कै पूरण ज्ञानी भलो,कै तो भलो अजाण । मूढमति अधवीच को ,जळ मां जिसों पखाण।।

कै पूरण ज्ञानी भलो,कै तो भलो अजाण । मूढमति अधवीच को ,जळ मां जिसों पखाण।।

शब्दार्थ :- या तो व्यक्ति पूर्ण ज्ञानी अच्छा होता है या फिर पूरा अज्ञानी ही ठीक होता है।  अपूर्ण ज्ञान या अपूर्ण जानकारी वाला तो जैसे पानी में पड़ा हुआ पथ्थर सामान होता है।
भावार्थ :-आधा-अधूरा ज्ञान या जानकारी ज्ञान ता से ज्यादा नुकसानप्रद हो सकता है।

पईसारी हांडी पण बजा‘र लेवै़ !

पईसारी हांडी पण बजा‘र लेवै़ !

शब्दार्थ :-पैसे की हांड़ी ( एक पैसे की / काम मूल्य की ) भी बजाकर लेते हैं

भावार्थ :- चाहे थोड़े मोल का ही मालखरीदना हो पर उसको खूब देखभाल कर लेना ही लेना चाहिए / लेते हैं । छोटे काम को भी खूब विचारपूर्वक करना चाहिए / करते हैं ।

दिन फिरै जद चतराई चूल्हे में जाय परी !

दिन फिरै जद चतराई चूल्हे में जाय परी !                               

शब्दार्थ :- जब दिन बदल जाते हैं तो चतुराई चूल्हे में जा पड़ती है।                                                            

भावार्थ :- जब किसी का समय बुरा चल रहा होता है तो वेसे में चतुराई से भी काम नहीं बन पाता है ।

घर रा छोरा घट्टी चाटे, पाडौसी ने आटो !

घर रा छोरा घट्टी चाटे, पाडौसी ने आटो !

शब्दार्थ :- घर के बच्चे तो खाने के लिए तरस रहे हैं,परन्तु पड़ौसी का भोजन या आटा दिया जा रहा है।

भावार्थ :- झूठी शान या अपना नाम या प्रसिद्धि के लिए अपनी क्षमता से अधिक खर्च करना / स्वयं का  नुकसान करते हुए भी दूसरों का लाभ करना जिससे की अपना नाम हो।

घी घल्योड़ो तो अँधेरा में बी छानों कोनी रैवे !

घी घल्योड़ो तो अँधेरा में बी छानों कोनी रैवे !                

शब्दार्थ :- भोजन में अगर घी डाला हो तो,नहीं बताने पर भी  छुपा नहीं रहता है ।                                       

भावार्थ :- किसी की भलाई का काम या कोई अच्छा किया हुआ काम प्रसिद्धी का मोहताज़ नहीं होता है,वो सामने आ ही जाता है ।

संगत बड़ा की कीजिये , बढत बढत बढ जाए ! बकरी हाथी पर चढी , चुग चुग कॊंपळ खाए !!

संगत बड़ा की कीजिये , बढत बढत बढ जाए !
बकरी हाथी पर चढी , चुग चुग कॊंपळ खाए !!

शब्दार्थ :-भावार्थ :-संगति हमेशा बड़ो की करनी चाहिए, जिससे उत्तरोत्तर वृद्धि हो जाती है।  .. बकरी ने हाथी से संगति की तो हाथी ने उसे अपनी पीठ पर बैठा लिया और अब वह चुन-चुन कर ऊँचे वृक्षों की हरी कोपले खा रही है।
भावार्थ :- संगति हमेशा बड़ो की,समृद्ध लोगों प्रभावशाली लोगों की करनी चाहिए। जिससे कि उनके अनुभव और ज्ञान से स्वयं को लाभ हाँसिल हो सकता है।

सत मत छोड़ो हे नराँ,सत छोड़्याँ पत जाय | सत की बाँधी लिच्छमी फेर मिलेगी आय ||

सत मत छोड़ो हे नराँ,सत छोड़्याँ पत जाय |
सत की बाँधी लिच्छमी फेर मिलेगी आय ||

शब्दार्थ :-सत्य का साथ मत छोडो ,सत्य का साथ छोड़ देने से सम्मान चला जाता है। अगर किसी कारण वश लक्ष्मी / वैभव कम हो गया हो तब भी सत्य की राह चलने से पुनः प्राप्त हो जाएगी। 

भावार्थ :- सत्यमेव जयते ! सत्य की अंततः विजय निश्चित है।

रूपलालजी गुरू, बाकी सब चेला !

रूपलालजी गुरू, बाकी सब चेला !
शब्दार्थ :-रुपया गुरु है, बाकी सब चेले हैं ।
 भावार्थ :- रुपया सबसे बड़ा है।

Monday, October 20, 2014

घर री खांड करकरी लागै चोरी रो गुड़ मीठो !

घर री खांड करकरी लागै चोरी रो गुड़ मीठो !

शब्दार्थ :-घर की खांड़/शक्कर करकरी लगती है, चोरी का गुड़ मीठा लगता है .

भावार्थ :- स्वयं की स्वामित्व की वस्तु का तिरस्कार करके मुफ्त की वस्तु पर आंख लगाना ।

Friday, October 17, 2014

झुकतै चेळा रा सै सीरी !

झुकतै चेळा रा सै सीरी !
शब्दार्थ :- तराजू के पल्ले में से झुकते हुए पल्ले में सब भागीदारी चाहते हैं।

भावार्थ :-अपने मतलब या स्वार्थ सिद्धि हेतु हर कोई उसी तरफ हो जाता है जिस तरफ अधिक फायदा होता है।

कात्यो पींज्यो कपास हुग्यो !

कात्यो पींज्यो कपास हुग्यो !

शब्दार्थ :- काता हुआ धागा और धुनी हुई रूई,सारी फिर कपास हो गई  !

भावार्थ :-मेहनत कर के किसी कार्य को पूर्ण किया पर किसी कारण से पूरा काम नष्ट हो गया।

Thursday, October 16, 2014

कह्याँ किसो कूवे में पड़ीजै ?

कह्याँ किसो कूवे में पड़ीजै ?
शब्दार्थ :-किसी के कहने मात्र से कौन सा कूवे में गिरा जाता है ?
भावार्थ :- किसी की सलाह मात्र से कोई ऐसा कार्य नहीं किया जाता है कि जिसमें हानि निश्चित हो।

कुम्हार कुम्हारी ने तो कोनी जीतै, गधैड़ै का कान मरोड़ै।

कुम्हार कुम्हारी ने तो कोनी जीतै, गधैड़ै का कान मरोड़ै।

शब्दार्थ :-किसि बात पर बहस में कुम्हार अपनी पत्नी से जीत नहीं पता है तो अपने गधे का  कान उमेठ  देता है।

भावार्थ :-  किसी चर्चा या बहस में अपनी बात नहीं मनवा सकने पर उसकी खीज़ किसी निर्बल या असहाय पर निकलना।

Sunday, October 12, 2014

बळयोड़ी बाटी ई उथळीजै कोनी।

बळयोड़ी बाटी ई उथळीजै कोनी।

शब्दार्थ :- जली हुई रोटी को भी नहीं पलटा जा सकता है।

भावार्थ :- आलस्य या कामचोरी के कारण सामने दिखाई देती हुए हानि को भी नहीं रोक सकते हैं ।

गंडक रे भरोसे गाडो कोनी चाले ।

गंडक रे भरोसे गाडो कोनी चाले ।

शब्दार्थ :- कुत्ते की जिम्मेदारी पर गाड़ी नहीं चल सकती है।

भावार्थ :- असक्षम या साधन विहीन लोगों या संस्थान की जिम्मेदारी पर महत्वपूर्ण कार्य नहीं सौंपा जा सकता है।

बकरी रे मूंढा में मतीरो कुण खटण दे ?

बकरी रे मूंढा में मतीरो कुण खटण दे  ?

शब्दार्थ :-बकरी के मुहँ में तरबूज कौन रहने देता है?

भावार्थ :- कमजोर / असहाय व्यक्ति को प्रभुत्वशाली और सक्षम लोग लाभ नहीं उठाने देते हैं। 

पागड़ी गयी आगड़ी, सिर सलामत चायीजै।

पागड़ी गयी आगड़ी, सिर सलामत चायीजै।

शब्दार्थ :-  पगड़ी रहे न रहे सिर की सलामती ज्यादा जरुरी है।
भावार्थ :- स्वार्थ की सिद्धि होती हो तो लोक-लाज की परवाह या मर्यादा की चिंता नहीं। 

करमहीन किसनियो, जान कठै सूं जाय । करमां लिखी खीचड़ी, घी कठै सूं खाय ।।

करमही किसनियो, जान कठै सूं जाय । करमां लिखी खीचड़ी, घी कठै सूं खाय ।।

शब्दार्थ :- भाग्यहीन किसन नामक व्यक्ति किसी विवाह समारोह में शामिल नहीं हो सकता है। उसके भाग्य में तो खिचड़ी खाना लिखा है वो घी कहाँ खा पायेगा।

भावार्थ :- भाग्य में जितना फल प्राप्त होना तय है,किसी  को उससे अधिक प्राप्त नहीं होता है।

घर तो घोस्यां का बळसी, पण सुख ऊंदरा भी कोनी पावै।

घर तो घोस्यां का बळसी, पण सुख ऊंदरा भी कोनी पावै।

शब्दार्थ :- अगर ' घोसीयों ' के घर जलेंगे तो उनकी हानि तो अवश्य होगी परन्तु वहां रहने वाले चूहे भी सुखी नहीं  रहेंगे।  ( घोसी = एक मुस्लिम जाति,जो की पशु पालन और दूध का व्यवसाय करते हैं.)
भावार्थ :-किसी व्यक्ति या संस्थान को अगर हानि होती है तो उन पर निर्भर अन्य लोगों को की मुसीबतों को सहन करना पड़ता है।

Friday, October 3, 2014

मान मनाया खीर न खाया, अैंठा पातल चाटण आया !

मान मनाया खीर न खाया, अैंठा पातल चाटण आया !

शब्दार्थ :- सन्मान के साथ मनाया तब खीर भी नहीं खायी परन्तु अब जूठे पतल चाटने को आ पहुंचे।
भावार्थ :- सन्मान के साथ जब मान-मनौवल की तब तो घमंड/अहम के कारण उच्च स्तर का कार्य भी नहीं करने को तैयार हुए पर जब समय बीत गया तब स्तरहीन कार्य भी करने तैयार हो गए। 

कागलां री दुरासीस सूं ऊंट कौनी मरै !

कागलां री दुरासीस सूं ऊंट कौनी मरै !
शब्दार्थ :-कौवे के श्राप देने मात्र से ऊँट नहीं मर सकता है।
भावार्थ :- निर्बल या असक्षम व्यक्ति के चिंतन से सक्षम व्यक्ति का बुरा नहीं हो सकता है।

पाणी पीणो छाणियो, करणो मनरो जाणियो !

पाणी पीणो छाणियो, करणो मनरो जाणियो !

शब्दार्थ :- पानी हमेशा छान कर पीना चाहिए और कोई भी काम हो मन मुताबिक  तब ही करना चाहिये।

भावार्थ :- किसी भी काम अच्छी तरह से जान समझ कर और अपने मन मुताबिक हो तब ही करना चाहिए,सूानो सबकी करो मन की।

राणाजी केहवे वठैई रेवाड़ी !

राणाजी केहवे वठैई रेवाड़ी !

शब्दार्थ :- महाराणा जहां कहे वहीँ उनकी राजधानी हो सकती है।

भावार्थ :-समर्थ एवं समृद्ध व्यक्ति की उचित/अनुचित हर बात को हर जगह प्रधान्य मिलता है।

धणो हेत टूटण ने,मोठी आँख फूटण ने !

धणो हेत टूटण ने,मोठी आँख फूटण ने !

शब्दार्थ :- जरुरत से ज्यादा प्रेम का टूटन निश्चित है और अधिक बड़ी आँख का फूटना भी !

भावार्थ :- अति हर चीज़ की बुरी होती है,फिर चाहे वो किसी अच्छी बात या चीज़ की ही क्यों ना हो। 

आंधी पीसे , कुत्ता खाय , पापी रो धन परले जाय !

आंधी पीसे , कुत्ता खाय , पापी रो धन परले जाय !

 शब्दार्थ :- अंधी औरत अनाज पीसती है , लेकिन कुत्ता खा लेता हैं,पापी के धन का नाश होता है।

भावार्थ :-पाप कर्म से और अनुचित कार्य से अर्जित धन का विनाश हो जाता है ।

बाप बता ,के( न'ई तो ) श्राद्ध कर !

बाप बता ,के( न'ई तो ) श्राद्ध कर !

शब्दार्थ :-या तो तुम्हारे पिताजी को दिखाओ या फिर उनका श्राद्ध कर डालो।

भावार्थ :-अपनी बात का सुबूत दिखाओ या फिर उस बात की समाप्त  कर दो जिस पर विवाद है।

कदै घी घणा,कदै मुट्ठी चणा !

कदै घी घणा,कदै मुट्ठी चणा !             -                            
                  
शब्दार्थ :- कभी बहुत अधिक घी प्राप्त मिल गया और कभी केवल एक मुट्ठी चने ही मिले।                            
भावार्थ :- किसी वस्तू या परिस्तिथि की कभी बहुतायत होना और कभी अत्यंत कमी या न्यूनता होना ।

न जाण , न पिछाण, हूँ लाडा री भुवा !

न जाण ,न पिछाण, हूँ लाडा री भुवा !

शब्दार्थ :- न जान, न पहचान, मैं वर की भुआ
भावार्थ :- किसी बात की गहराई को जाने बिना अपना मत रखना और उसे मनवाने की जिद्द करना ।

Thursday, October 2, 2014

मांग्या मिलै रे माल, जकांरै कांई कमी रे लाल !

मांग्या मिलै रे माल, जकांरै कांई कमी रे लाल !

शब्दार्थ :- जिनको मांगने से ही धन मिल जाता है,उनको किसी चीज़ की क्या कमी हो सकती है ?

भावार्थ :-ऐसे लोग जिनको अपना गुजारा/काम ही मांग-तांग कर चलाना होता है,उनको क्या परेशानी हो सकती है ? परन्तु जिनका उद्देश्य परिश्रम से ही सफलता हांसिल करना होता है,उनको कष्ट तो सहन करना ही पड़ता है। 

Sunday, September 28, 2014

ठावें-ठावें टोपली,बाकी ने लंगोट।

ठावें-ठावें टोपली,बाकी ने लंगोट।

शब्दार्थ :- कुछ चुने हुए लोगों को टोपी दी गयी परन्तु शेष लोगों को सिर्फ लंगोट ही मिली ।


भावार्थ :- कुछ विशेष चयनित लोगों का तो यथोचित सम्मान किया गया परन्तु शेष लोगों को जैसे-तैसे ही निपटा दिया गया / कुछ महत्वपूर्ण कार्यों को कर लिया परन्तु सामान्य कार्यों की उपेक्षा कर दी गयी।

Friday, September 26, 2014

ठठैरे री मिन्नी खड़के सूं थोड़ाइं डरै !

ठठैरे री मिन्नी खड़के सूं थोड़ाइं डरै !

शब्दार्थ :-  ठठैरे ( जो की धातु की चद्दर की पीट -पीट कर बर्तन बनाता है ) के वहां रहने वाली बिल्ली खटखट करने से डरकर नहीं भागती क्योंकि वह तो सदा खटखट सुनती रहती है।

भावार्थ :- किसी कठिन माहौल में रहने-जीने व्यक्ति के लिए वहां की कठिनाई आम बात होती हैं,वह उस परिस्तिथि से घबराता नहीं है।

कमाऊ आवे डरतो ,निखट्टू आवे लड़तो !

कमाऊ पूत आवै डरतो, अणकमाऊ आवै लड़तो। 

शब्दार्थ :- कमाने वाला बेटा तो घर में डरता हुआ प्रवेश करता है, लेकिन जो कभी नहीं कमाता वह लड़ाई झगडा करते हुए ही आता है।

भावार्थ :- परिवार में धनार्जन करने वाले व्यक्ति को हर समय अपने मान-सम्मान का ध्यान रहता है, लेकिन निखट्टू को अपनी बात मनवाने का ही ध्यान रहता है। 

ब्यांव बिगाड़े दो जणा , के मूंजी के मेह , बो धेलो खरचे न'ई , वो दडादड देय !

ब्यांव बिगाड़े दो जणा , के मूंजी के मेह ,
बो धेलो खरचे ' , वो दडादड देय !

शब्दार्थ :-विवाह को दो बातें ही बिगाड़ती  है, कंजूस के कम पैसा खर्च करे से और बरसात के जोरदार पाी बरसा देे से .

भावार्थ :-काम को सुव्यवस्थित करके लिए उचित खर्च करा जरुरी होता है,वहीँ प्रकृति का सहयोग भी आवश्यक है।

हूं गाऊँ दिवाळी'रा, तूं गाव़ै होळी'रा ।

हूं गाऊँ दिवाळी'रा, तूं गाव़ै होळी'रा ।


शब्दार्थ :- मैं दिवाली के गीत गाता हूँ और तू होली के गीत गाता है।

भावार्थ:- मैं यहाँ किसी प्रसंग विशेष पर चर्चा कर रहा हूँ और तुम असंबद्ध बात कर रहे हो।

म्है भी राणी, तू भी राणी, कुण घालै चूल्हे में छाणी ?

म्है भी राणी, तू भी राणी, कुण घालै चूल्हे में छाणी?

शब्दार्थ :- मैं भी रानी हूँ और तू भी रानी है तो फिर चूल्हे को जलाने के लिए उसमें कंडा/उपला कौन डाले ?
भावार्थ :- अहम या घमण्ड के कारण कोई भी व्यक्ति अल्प महत्व का कार्य नहीं करना चाहता है।

मढी सांकड़ी,मोड़ा घणा !

मढी सांकड़ी,मोड़ा घणा !

शब्दार्थ:-मठ छोटा है और साधु बहुत ज्यादा हैं।  (मोडा =मुंडित, साधु)

भवार्थ:- जगह/वस्तु अल्प मात्रा में है,परन्तु जगह/वस्तु के परिपेक्ष में उसके हिस्सेदार ज्यादा हैं।

Thursday, September 25, 2014

आप री गरज गधै नेै बाप कहवावै!

आप री गरज गधै नेै बाप कहवावै!

शब्दार्थ:-
अपनी जरुरत/अपना हित गधे को बाप कहलवाती है।

भावार्थ :-स्वार्थसिद्धि के लिए अयोग्य/ कमतर व्यक्तित्व वाले आदमी की भी खुशामद करनी पड़ती है।

Friday, September 19, 2014

चिड़ा-चिड़ी री कई लड़ाई, चाल चिड़ा मैँ थारे लारे आई |

चिड़ा-चिड़ी री कई लड़ाई, चाल चिड़ा मैँ थारे लारे आई |

 शब्दार्थ:-चिड़िया व चिड़े की कैसी लड़ाई,चल चिड़ा मैं तेरे पीछे  आती हूँ।

 भावार्थ :- पति-पत्नी के बीच का मनमुटाव क्षणिक होता है।

चाए जित्ता पाळो , पाँख उगता ईँ उड़ ज्यासी |

चाए जित्ता पाळो , पाँख उगता ईँ उड़ ज्यासी |

शब्दार्थ:-पक्षी के बच्चे को कितने ही लाड़–प्यार से रखो,वह पंख लगते ही उड़ जाता है।

भावार्थ :- हर जीव या वस्तु उचित समय आने पर अपनी प्रकृति के अनुसार आचरण अवश्य  करते ही हैं।

पड़ै पासो तो जीतै गंव़ार !

पड़ै पासो तो जीतै गंव़ार !

शब्दार्थ :- पासा अनुकूल पड़े,तो गंवार भी जीत जाता है. (चौसर के खेल में सब कुछ दमदार पासा पड़ने पर निर्भर करता है, उसमें और अधिक चतुराई की आवश्यकता नहीं होती है)

भावार्थ:- भाग्य अनुकूल हो तो अल्प बुद्धि वाला भी काम बना लेता है, नहीं तो अक्लमंद की भी कुछ नहीं चलती।

Saturday, September 13, 2014

नागां री नव पांती अ'र सैंणा री एक।

नागां री नव पांती अ'र सैंणा री एक।

शब्दार्थ :- उदण्ड/स्वछन्द व्यक्ति को किसी चीज के बंटवारे में नौ हिस्से चाहिए.

भावार्थ:- उदण्ड/स्वछन्द व्यक्ति किसी साझा हिस्से वाली चीज़ या संपत्ति में से अनुचित हिस्सेदारी लेना चाहता है जबकि सज्जन व्यक्ति अपने हक़ के ही हिस्से से ही संतुष्ठ रहता है.


कार्तिक की छांट बुरी , बाणिये की नाट बुरी , भाँया की आंट बुरी , राजा की डांट बुरी।

कार्तिक की छांट बुरी , बाणिये की नाट बुरी ,
भाँया की आंट बुरी , राजा की डांट बुरी।

अर्थ - कार्तिक महीने की वर्षा बुरी , बनिए की मनाही , भाइयों की अनबन बुरी और राजा की डांट-डपट बुरी।

आळस नींद किसान ने खोवे , चोर ने खोवे खांसी , टक्को ब्याज मूळ नै खोवे , रांड नै खोवे हांसी।

आळस नींद किसान ने खोवे , चोर ने खोवे खांसी ,
टक्को ब्याज मूळ नै खोवे , रांड नै खोवे हांसी।

अर्थ - किसान को निद्रा व आलस्य नष्ट कर देता है , खांसी चोर का काम बिगाड़ देती है , ब्याज के  लालच से  मूल धन  भी है डूब जाता है और हंसी मसखरी विधवा को बिगाड़ देती है।

जाट र जाट, तेरै सिर पर खाट। मियां र मियां , तेरै सिर पर कोल्हू। 'क तुक जँची कोनी। 'क तुक भलांई ना जंचो , बोझ तो मरसी।

जाट र जाट, तेरै सिर पर खाट।
मियां र मियां , तेरै सिर पर कोल्हू।
'क तुक जँची कोनी।
'क तुक भलांई ना जंचो , बोझ तो मरसी। 


अर्थ - एक मियाँ  ने जाट से मजाक में कहा की जाट, तेरे सिर पर खाट। स्वभावतः जाट ने मियाँ से कहा की,मियाँ! तेरे सिर पर कोल्हू।मियाँ ने पुनः जाट से कहा की तुम्हारी तुकबंदी जँची नहीं तो जाट बोला की तुकबंदी भले ही न जँचे , लेकिन तुम्हारे सिर पर बोझ तो रहेगा ही।

कमाई करम की, इज्जत भरम की, लुगाई सरम की।

कमाई करम की, इज्जत भरम की, लुगाई सरम की।

अर्थ - कमाई भाग्य से होती है, जब तक भ्रम बना रहे तभी तक इज्जत है और जब तक शील संकोच बना रहता है तभी तक स्त्री, स्त्री है।

कदे 'क दूध बिलाई पीज्या, कदे 'क रहज्या काचो। कदे 'क नार बिलोवै कोनी, कदे 'क चूंघज्या बाछो।

कदे 'क दूध बिलाई पीज्या, कदे 'क रहज्या काचो।
कदे 'क नार बिलोवै कोनी, कदे 'क चूंघज्या बाछो।

शब्दार्थ:-घर में गायें  होने पर भी गृह स्वामी को कभी दूध दही नहीं मिल पाता। कभी दूध को बिल्ली पी जाती है, तो कभी वह कच्चा रह जाता है। कभी घर वाली बिलोना नहीं डालती तो कभी बछड़ा चूस जाता है।
 

भावार्थ :- साधनो के बावजूद योजना पूर्वक कार्य नहीं करने से कार्य सिद्धि में एक न एक बाधा उपस्थित होते रहती है ।

कुत्तो सो कुत्ते नै पाळे , कुत्तोँ सौ कुत्तोँ नै मारै। कुत्तो सो भैंण घर भाई , कुत्तोँ सो सासरे जवाँई। वो कुत्तो सैं में सिरदार , सुसरो फिरे जवाँई लार।

कुत्तो सो कुत्ते नै पाळे , कुत्तोँ सौ कुत्तोँ नै मारै।
कुत्तो सो भैंण घर भाई , कुत्तोँ सो सासरे जवाँई।
वो कुत्तो सैं में सिरदार , सुसरो फिरे जवाँई लार।

अर्थ - कुत्ते को पालना अथ्वा मारना दोनों ही बुरे है। यदि भाई अपनी बहन के घर और दामाद ससुराल में रहने लगे तो उनकी क़द्र भी कम होकर कुत्ते के समान हो जाती है। लेकिन यदि ससुर अपना पेट् भरने के लिए दामाद के पीछे लगा रहे तो वो सबसे गया गुजरा माना जाता है।

आडे दिन से बासेड़ा ई चोखो जिको मीठा चावळ तो मिले

आडे दिन से बासेड़ा ई चोखो जिको मीठा चावळ तो मिले

अर्थ - सामान्य दिन कि उपेक्षा 'बासेड़ा'[शीतला देवी का त्यौहार] ही अच्छा जो खाने के लिए मीठे चावल तो मिले।

राधो तू समझयों नई , घर आया था स्याम दुबधा में दोनूं गया , माया मिली न राम ………

राधो तू समझयों न'ई , घर आया था स्याम
दुबधा में दोनूं गया , माया मिली न राम !

अर्थ - दुविधा में दोनों ही चले गए , न माया मिली न राम
न खुदा ही मिला न विसाले सनम। ......

जीवते की दो रोटी , मरोड्ये की सो रोटी। …।

जीवते की दो रोटी , मरोड्ये की सो रोटी। …।

अर्थ - जीते हुए की सिर्फ दो रोटी और मरे हुए की सौ रोटियाँ लगती है। ....

खाट पड़े ले लीजिये , पीछै देवै न खील आं तीन्यां का एक गुण , बेस्यां बैद उकील। ……

खाट पड़े ले लीजिये , पीछै देवै न खील
आं तीन्यां का एक गुण , बेस्यां बैद उकील। ……

अर्थ - वैश्या अपने ग्राहक से और वैद्य अपने रोगी से खाट पर पड़े हुए ही जो लेले सो ठीक है, पीछे मिलने की उम्मीद न करे। …इसी प्रकार वकील अपने मुवक्किल से जितना पहले हथिया ले वही उसका hai....

कै मोड्यो बाँधे पाग्ड़ी कै रहै उघाड़ी टाट। …।


कै मोड्यो बाँधे पाग्ड़ी कै रहै उघाड़ी टाट। …।

बाबाजी बांधे तो सिर पर पगड़ी ही बांधे नहीं तो नंगे सिर ही रहे। .....

बाबाजी बांधे तो सिर पर पगड़ी ही बांधे नहीं तो नंगे सिर ही रहे। .....

कुम्हार गधे चढले , 'क कोनी चढू , पण फेर आपै ई चढले। …।

कुम्हार गधे चढले , 'क कोनी चढू , पण फेर आपै ई चढले। …।

जो मनुष्य बार बार कहने पर भी किसी काम को न करे , लेकिन फिर झख मार कर अपने आप करले .......

दांतले खसम को रोवते को बेरो पड़े ना हँसते को.......

दांतले खसम को रोवते को बेरो पड़े ना हँसते को.......

अर्थ - दंतुले [जिसके दांत बाहर दिखते हो] पति का कुछ पता नहीं चलता कि वह रो रहा है या हँस रहा है........

संगत बड़ा की कीजिये , बढत बढत बढ जाए बकरी हाथी पर चढी , चुग चुग कॊंपळ खाए !

संगत बड़ा की कीजिये , बढत बढत बढ जाए
बकरी हाथी पर चढी , चुग चुग कॊंपळ खाए ........

अर्थ - संगति हमेशा बड़ो की करनी चाहिए .. बकरी ने हाथी से संगति की तो हाथी ने उसे अपनी पीठ पर बैठा लिया और अब वह चुन चुन कर वृक्षों की हरी कोपले खा रही है.....

परनारी पैनी छुरी , तीन ठोर से खाय धन छीजे जोबन हडे , पत पञ्चां में जाय ......

परनारी पैनी छुरी , तीन ठोर से खाय
धन छीजे जोबन हडे , पत पञ्चां में जाय ......

अर्थ - परनारी से प्रेम करना पैनी छुरी के समान है ... वह धन और यौवन का हरण करती है और पंचो में प्रतिष्ठा गवां देती है......

दूर जंवाई फूल बरोबर , गाँव जंवाई आधो , घर जंवाई गधे बरोबर , चाये जिंया लादो.....

दूर जंवाई फूल बरोबर , गाँव जंवाई आधो ,
घर जंवाई गधे बरोबर , चाये जिंया लादो.....

अर्थ - दूर रहने वाला दामाद का अधिक सम्मान रहता है, गाँव वाले का आधा और घर जंवाई की क़द्र तो गधे के बराबर रह जाती है........

भलांई खीर बिगड्गी पण, राबड़ी से न्हाऊं कौनी !

भलांई खीर बिगड्गी पण, राबड़ी से न्हाऊं कौनी !

शब्दार्थ:- खीर यदि बिगड़ भी जाए तो राबड़ी से बुरी नहीं। 

भावार्थ :- कोई अच्छा/उच्च स्तर का काम न हो सका हो या अच्छी वस्तु  न मिल सके,तो भी स्तरहीन या निम्न गुणवत्ता वाला काम/वस्तु  से समझौता स्वीकार्य नहीं है।

रांड भांड न छेड़िए , पण्घट पर दासी I भूखो सिंह न छेड़िए , सुत्यो सन्यासी II

रांड भांड न छेड़िए , पण्घट पर दासी I
भूखो सिंह न छेड़िए , सुत्यो सन्यासी II

अर्थ - विधवा स्त्री , भांड , पनघट की दासी , भूखे सिंह एवं सोये हुए सन्यासी से कभी छेड़ छाड़ नहीं करनी चाहिए I

ज्यांका मर ग्या बादशा रुळता फिरे वज़ीर !

ज्यांका मर ग्या बादशा रुळता फिरे वज़ीर !
शब्दार्थ :- जिनके बादशाह या प्रमुख की मृत्यु हो गयी,उनके अनुयायी /कनिष्ठ लोग मारे-मारे फिरते हैं।

भावार्थ :-  जब किसी प्रभावशाली व्यक्ति का किन्ही लोगों पर वरद्हस्त हो,और उस प्रभावशाली व्यक्ति की मृत्यु हो जाये या वो सत्ता पर न रहे तो उसके अनुयायी/कनिष्ठ लोगों का प्रभाव या रुतबा भी नष्ट हो जाता है !

आज ही मोडियो मूंड मुडाया अर आज ही ओळा पड्या !

आज ही मोडियो मूंड मुडाया अर आज ही ओळा पड्या.........

अर्थ - आज ही बाबाजी ने सिर मुंडवाया और आज ही ओले पड़े........

आंधे की गफ्फी , बोळे को बटको , राम छुटावे तो छूटे , नहीं सिर ही पटको ......


आंधे की गफ्फी , बोळे को बटको ,
राम छुटावे तो छूटे , नहीं सिर ही पटको ......

 

अर्थ - अंधे के हाथों और बहरे के दाँतों की पकड़ सहज ही नहीं छूटती.........

आंधे की माखी राम उड़ावे .....

आंधे की माखी राम उड़ावे ........

अर्थ - असहाय का मालिक इश्वर है. वही उसकी सहायता और मदद करता है...

मियांजी जीता रैसी तो फजीती और घणी ई हो ज्यासी .............

मियांजी जीता रैसी तो फजीती और घणी ई हो ज्यासी .............

अर्थ - मियांजी की फजीती [फजीहत ] नामक लड़की मर गयी तो 'फजीती' की माँ रोने लगी ...इस पर पड़ोसिन ने उसे आश्वस्त करते हुए कहा कि रोटी क्यों हो? मियांजी जीते रहेंगे तो 'फजीती' [फजीहत] और बहुत होगी........

ब्यांव बिगाड़े दो जणा , के मूंजी के मेह , बो धेलो खरचे न'ई , वो दडादड देय !

ब्यांव बिगाड़े दो जणा , के मूंजी के मेह ,
बो धेलो खरचे न'ई , वो दडादड देय !
 

शब्दार्थ :-विवाह को दो बातें ही बिगाड़ती  है, कंजूस के कम पैसा खर्च करने से और बरसात के जोरदार पानी बरसा देने से .

भावार्थ :-काम को सुव्यवस्थित करने के लिए उचित खर्च करना जरुरी होता है,वहीँ प्रकृति का सहयोग भी आवश्यक है।

अण मांगी दूध बरोबर , मांगी मिले सो पाणी , वा भिच्छा है रगत बरोबर , जीं में टाणा टानी........

अण मांगी दूध बरोबर , मांगी मिले सो पाणी ,
वा भिच्छा है रगत बरोबर , जीं में टाणा टानी........

अर्थ - बिना मांगे जो भिक्षा मिले वह दूध के समान [सात्विक] , जो मांगने पर मिले वह पानी के समान और जो भिक्षा खींच तान करके प्राप्त की जाय वह रक्त के तुल्य होती होती.
......

धोबी के लाग्या चोर , डूब्या और इ और ......

धोबी के लाग्या चोर , डूब्या और इ और ......

अर्थ - धोबी के यहाँ चोरी हुई तो तो दूसरे लोगों का ही नुक्सान हुआ ...........
धोबी के यहाँ जो कपड़े धुलने आते है , वे दुसरो के ही होते है .....
रांड भांड न छेड़िए , पण्घट पर दासी I
भूखो सिंह न छेड़िए , सुत्यो सन्यासी II


अर्थ - विधवा स्त्री , भांड , पनघट की दासी , भूखे सिंह एवं सोये हुए सन्यासी से कभी छेड़ छाड़ नहीं करनी चाहिए I

सती सराप देवे नी , छिनाल रो सराप लागे नी !

सती सराप देवे नी , छिनाल रो सराप लागे नी !

शब्दार्थ:- अपनी महानता के कारण सती तो श्राप देती नहीं है और छिनाल का श्राप फलित नहीं होता है । 

भावार्थ :- अच्छे व्यक्ति किसी का बुरा नहीं करते हैं और बुरे व्यक्ति अगर कसी का अनिष्ट चाहता है तो भी बुरा होता नहीं है।  अतः किसी बुरे फल की नाहक चिंता नहीं करनी चाहिए।

राबड़ी रांड ई कैवे,के म्हनै दांतां सें खावो।

राबड़ी रांड ई कैवे , के म्हनै  दांतां सें खावो।

शब्दार्थ:-राबड़ी को दांतों से चबाने की आवश्यकता नहीं पड़ती , लेकिन वह भी कहती है की मुझे दांतों से चबा कर खाओ।
भावार्थ :-कोई कमतर महत्त्व का आदमी विशेष सम्मान प्राप्त करना चाहता है। 

घर से उठ बन में गया अ'र बन में लगी लाय !

घर से उठ बन में गया अ'र बन में लागी लाय !

शब्दार्थ:- व्यक्ति घर से ऊब कर जंगल में गया,परन्तु वहां भी आग लग गयी।
 
भावार्थ :- अभागे व्यक्ति को कहीं सुख नहीं मिलता है।

जाण मारै बाणियों , पिछाण मारै चोर !

जाण मारै बाणियों , पिछाण मारै चोर !
शब्दार्थ:-  बनिया ग्राहक की गरज को समझ कर अधिक ठगता  है और चोर पूरी जानकारी लेकर चोरी करता
है । 

भावार्थ :- बनिया ग्राहक की आवश्यकता को भाँपकर वस्तु का मुल्य अधिक वसूलता है,जबकि चोर को जहाँ चोरी करनी होती ,वहां का भेद प्राप्त करने के बाद ही चोरी करता है।

आप मरयां जग परलै !

आप मरयां जग परलै !

शब्दार्थ:- स्वयं मरने के बाद,जैसे जगत में प्रलय हो जाता है।

भावार्थ :- मनुष्य मर गया तो उसके लिए संसार मर गया, बाद में संसार रहे चाहे न रहे,इस बात से उसे क्या अंतर पड़ता है ?

Tuesday, September 9, 2014

आप न जाव़ै सास रै,औरां ने सीख देय !

आप न जाव़ै सास रै,औरां ने सीख देय  !

शब्दार्थ:-
स्वयं तो ससुराल नहीं जाती है लेकिन दूसरों को जाने की शिक्षा देती है।

भावार्थ :-
दूसरों को उपदेश तो देते हैं कि उनको क्या करना चाहिए परन्तु स्वयं उस सलाह पर नहीं चलते हैं ।

नहिं बेली रो राम बेली !

नहिं बेली रो राम बेली !

शब्दार्थ:-जिसका कोई सखा नहीं है, उसका सखा राम होता है .
भावार्थ :- जिसकी कोई सहायता नहीं करता है उसकी सहायत परमात्मा करता है।

Monday, September 8, 2014

आपरी खा’यर परायी तक्कै, जाय हड़मान बाबै'रे धक्कै।

आपरी खा’यर परायी तक्कै, जाय हड़मान बाबै'रे धक्कै।

 
शब्दार्थ:- जो आदमी अपनी रोटी खाकर परायी को भी लेना चाहता है वह
हनुमानजी के धक्के चढ़ता है।

भावार्थ :-
जो स्वयं की मेहनत का फल पाने के बाद भी संतोष नहीं करता है और छल-कपट से दूसरे का हक छीनना चाहता है,उसको मुसीबत का सामना करना पड़ता है।

बकरा की माँ कित्ता थाव़र टाळसी ।

बकरा की माँ कित्ता थाव़र टाळसी ।

शब्दार्थ:- बकरे की माँ कितने शनिवार टाल सकती है।

भावार्थ :- आसन्न विपत्ति को कुछ समय के लिए तो टाला जा सकता है,परन्तु समाप्त नहीं किया जा सकता है।

करंता सो भुगंता, खुणंता सो पड़ंता .

करंता सो भुगंता, खुणंता सो पड़ंता .
शब्दार्थ:- जो करता है सो भोगता है, जो दूसरे के लिए खाई खोदता है वह
स्वयं पड़ता है।

भावार्थ :-अपनी करनी का फल भोगना ही पड़ता है।

आप मिलै सो दूध बराबर, मांग मिलै सो पाणी।

आप मिलै सो दूध बराबर, मांग मिलै सो पाणी।

शब्दार्थ:- जो स्वयं बिना मांगे मिले वह दूध के समान होता है और जो मांगने से
मिले वह पानी के समान होता है।

भावार्थ :- जो श्रम से अथवा सम्मान से अर्जित किया जाता है वो सुखद एवं कीर्ति बढ़ने वाला होता है और जो मांग कर,हट्ट करके लिया जाये निस्तेज और कमतर होता है।

कनै कोडी कोनी, नांव किरोड़ीमल।

कनै कोडी कोनी, नांव किरोड़ीमल
 


शब्दार्थ:- स्वयं के पास में कौड़ी नहीं है लेकिन ऐसे व्यक्ति का नाम करोड़ीमल है।

भावार्थ :-
नाम या ख्याति के अनुरूप किसी के पास धन वैभव ना हो अथवा किसी जगह /वस्तु में  नाम के अनुसार गुण न हो।

आम फळे नीचो तुळै,अेरंड अकासां जाय।

आम फळे नीचो तुळै,अेरंड अकासां जाय।

शब्दार्थ:-आम फलता है तो नीचे झुकता है, ऐरंड आकाश की ओर जाता है।

भावार्थ :-धीर-गंभीर व्यक्तित्व वाले आदमी संपत्ति या प्रभुता पाकर नम्र हो जाते हैं जबकि छिछले और उच्छृंकल  व्यक्तित्व वाले आदमी इतराने लगते हैं।

Monday, September 1, 2014

नागा रो लाय में कांई बळै ?

नागा रो लाय में कांई बळै ?

शब्दार्थ:-अगर कहीं आग लग जाये तो उदण्ड/स्वछन्द व्यक्ति का  (यहाँ ऐसा अर्थ की जिस का हानि-लाभ में कुछ भी हिस्सा न हो ) उस आग में क्या जल जायेगा ?

भावार्थ :- ऐसे व्यक्ति की किसी निहित कार्य में क्या हानि हो सकती  है ? जिसका उस जगह पर कुछ है ही नहीं।

नाई री जान में सैंग ठाकर।

नाई री जान में सैंग ठाकर।

शब्दार्थ:- नाई की बारात में आये हुए सब लोग ठाकुर जाति के(उच्च कुल /जाति के) हैं।

भावार्थ :- निर्बल या कम सक्षम व्यक्ति के हितार्थ काम में कोई भी सहयोग करने को राजी नहीं है।

मिन्नी रो तो रोळ व्हे ,अर उंदरा रो घर भांगे।

मिन्नी रो तो रोळ व्हे ,अर उंदरा रो घर भांगे।

शब्दार्थ:- बिल्ली के  खेल-खेल में चूहे का बिल टूट जाता है।

भावार्थ :- समर्थ और सक्षम व्यक्ति का ऐसा व्यहवहार जिसमें उसको तो आनंद मिले परन्तु निर्बल व्यक्ति का बहुत अधिक नुक्सान हो जाये।

दाई सुं पेट थोड़ो'ई छानों रेवै !

दाई सुं पेट थोड़ो'ई छानों रेवै !

शब्दार्थ:- दाई से पेट नहीं छुपाया जा सकता है।

भावार्थ :- अनुभवी व्यक्ति से किसी बात का भेद छुपाया नहीं जा सकता है।

लाडू री कोर में कुण खारो,कुण मीठो ?

लाडू री कोर में कुण खारो,कुण मीठो ?

शब्दार्थ:-लड्डू की ग्रास में कौनसा भाग खारा और कौनसा भाग मीठा ?

भावार्थ :- बगैर पक्षपात के सभी के साथ समान व्यहवार करना, सबको एक समान मानना।

Saturday, August 30, 2014

गरज दीवानी गूजरी नूंत जिमावै खीर,गरज मिटी गूजरी नटी,छाछ नही रे बीर ।

गरज दीवानी गूजरी नूंत जिमावै खीर,गरज मिटी गूजरी नटी,छाछ नही रे बीर।

शब्दार्थ:-अगर अपनी गरज हो तो गूजरी (गुजर एक जाती -जो कि दूध-दही का व्यापार करते हैं) न्यौता देकर खीर खिलाती है परन्तु गरज समाप्त हो जाने पर वही गुजरी कहती है कि,भाई ! मेरे पास तो छाछ भी नहीं है।

भावार्थ :- आवश्यकता होने पर कोई व्यक्ति जो व्यवहार करता है वाही आवश्यकता ख़त्म होने पर उपेक्षा करने लग जाता है।

आयी ही छाछ नै, बण बैठी घर री धणियाणी !

आयी ही छाछ नै, बण बैठी घर री धणियाणी !

शब्दार्थ :-:-छाछ लेने के लिए आयी थी और घर की मालकिन बन बैठी।

भावार्थ :- सहायता लेने के बहाने से किसी बात को आरम्भ करके किसी बात या चीज पर अधिकार करने की कोशिश करना।

पगां बळती को दिसै नी, डूंगर बळती दिस जाय !

पगां बळती को दिसै नी, डूंगर बळती दिस जाय !

शब्दार्थ :- पैरों के पास जलती आग नहीं दिखायी देती, दूर पहाड़ पर जलती हुई दिखायी दे जाती है।

भावार्थ :- अपने दोष नहीं देखते हैं, दूसरों के दिखायी पड़ जाते हैं।

Thursday, August 28, 2014

अभागियो टाबर त्यूंहार ने'ई रूसै !

अभागियो टाबर त्यूंहार ने'ई रूसै !

शब्दार्थ :– भाग्यहीन बालक त्यौंहार के दिन भी नाराज़ हो जाता है,जबकि उस दिन ख़ुशी का माहौल होता है और व्यंजन,पकवान बनते हैं.

भावार्थ :- सुअवसर उपलब्ध होते हुए भी,उस अवसर का अपनी गलती के चलते लाभ न उठा पाना।

अम्बर को तारो,हाथ सै कोनी टूटे!

अम्बर को तारो,हाथ सै कोनी टूटे!
शब्दार्थ :-आकाश का तारा,हाथ से नहीँ टूटता है।
भावार्थ :-उच्च लक्ष्य प्राप्त करने के लिए,सतत प्रयास आवश्यक होता है।

Wednesday, August 27, 2014

पिस्या थारा तीन नाम,परस्या,परसु,परसा राम!

पिस्या थारा तीन नाम,परस्या,परसु,परसा राम!

शब्दार्थ :- पैसा(पैसे /धन) तेरे तीन नाम,परस्या,परसु,परसाराम।

भावार्थ :- व्यक्ति विशेष के पास धन और वैभव आने से लोगों का आचरण परिवर्तित हो जाता है।उसकेसम्मान में भी वृद्धि हो जाती है। निर्धन परसराम (नामक व्यक्ति) परस्या!थोड़ा संपन्न होने परसु और अधिक सम्पन्न होने पर परसा राम कह कर पुकारा जाता है।

Tuesday, August 26, 2014

बान्दरो हुतो , बिच्छू काट ग्यो !

बान्दरो हुतो , बिच्छू काट ग्यो !

शब्दार्थ :-   बन्दर को जैसे बिच्छू ने काट लिया हो।

भावार्थ :- शेखी बघारने वाले या अगुणी अल्पगुणी व्यतित्व वाले को जैसे और अधिक अपना राग अलापने का मौका मिल गया. (जैसे कि  करेला और  नीम  चढ़ा ).

Sunday, August 24, 2014

खुद रा गया रो दुःख कोनी, जेठजी रा रह्योडा रो दुःख है।

खुद रा गया रो दुःख कोनी, जेठजी रा रह्योडा रो दुःख है।

शब्दार्थ:- स्वयं की हानि का दुःख नहीं है हो रहा है ,परन्तु जेठ जी के लाभ/बचत का दुःख हो रहा हैं।

भावार्थ:-  अपने दुःख से भी ज्यादा दुःख,पराये को सुख क्यों मिला इस बात से होता है.

Friday, August 22, 2014

टकै की हांडी फूटी, गंडक की जात पिछाणी ।

 टकै की हांडी फूटी, गंडक की जात पिछाणी ।

शब्दार्थ :- काम मूल्य का मिटटी का बर्तन फूट गया क्योकि वो अच्छी तरह से नहीं बनाया गया था,समय पर अपने मालिक की सहायता न करने से कुत्ते की गुणवत्ता मालूम चल गयी।

भावार्थ :-  थोड़े से नुकसान से ही निम्नस्तर या अवगुणी की पहचान हो गयी ।

सदा न जुग में जीवणा, सदा न काळा केस। सदा न बरसे बादली, सदा न सावण होय।

सदा न जुग में जीवणा, सदा न काळा केस।
सदा न बरसे बादली, सदा न सावण होय।

शब्दार्थ :- संसार कोई भी अमर नहीं है,पूरी उम्र किसीके भी बाल काले नहीं रहते। बादल छाये हुए हों तो जरुरी नहीं कि बरसेंगे ही और हर मौसम सावन नहीं होता।

भावार्थ :- इस संसार में कोई भी वस्तु हमेशा के लिए एक सामान नही रहती है,सब कुछ समय के अधीन है और परिवर्तनशील है।

Wednesday, August 20, 2014

गुड़ कोनी गुलगुला करती,ल्याती तेल उधारो। परींडा में पाणी कोनी, बलीतो कोनी न्यारो। कड़ायो तो मांग कर ल्याती,पण आटा को दुःख न्यारो।


गुड़ कोनी गुलगुला करती,ल्याती तेल उधारो।
परींडा में पाणी कोनी, बळीतो कोनी न्यारो।
कड़ायो तो मांग कर ल्याती,पण आटा को दुःख न्यारो।


शब्दार्थ :- घर में  ग़ुड़ नहीं है वरना गुलगुले बनाती,तेल उधर मांग लाती, परिण्डे( घर में पीने के पानी की मट्की रखने की जगह)  में पानी नहीं है और जलावन(लकड़ी या ईंधन) भी नहीं है, कड़ाई मांग कर लाती परन्तु आटा भी नहीं है.

भावार्थ :- साधन की उपलब्धता नहीं है,वरना किसी कार्य को बहुत अच्छी तरह निपटाया जाता। (किसी की सहायता करने की इच्छा ना हो तो बहाने हज़ार हैं)

Tuesday, August 19, 2014

गंडक की पूँछ कै न्योळी बंधरी है.

गंडक की पूँछ कै न्योळी बंधरी है.

 
शब्दार्थ :- कुत्ते की पूँछ से 'न्योळी'
(कपडे की ऐसी जेबनुमा थेैली जिसमें रूपिये रख कर,पेट पर इस तरह बाँधा जाता है की, कपड़ों के अंदर रहने पर भी अंदाज़ ना हो कि,कुछ बंधा हुआ है) बंधी हुई है।

 भावार्थ :-
अपात्र के पास धन हो भी जाए तो किस काम का जिसका कि,वो उपयोग ही ना कर सके

Monday, August 18, 2014

उन्दरी का जयोड़ा ने बिल तो खोदणो ई पड़े।

उन्दरी का जयोड़ा ने बिल तो खोदणो ई पड़े।

शब्दार्थ :-चुहिया के बच्चे को बिल तो खोदना ही पड़ता है।

भावार्थ :-इस संसार में जन्मे हुए हर व्यक्ति को अपने जीवनयापन के लिए कार्य तो क
रना ही पड़ता है।
उन्दरी का जयोड़ा ने बिल तो खोदणो ई पड़े।

शब्दार्थ :-चुहिया के बच्चे को बिल तो खोदना ही पड़ता है।

भावार्थ :-इस संसार में जन्मे हुए हर व्यक्ति को अपने जीवनयापन के लिए

Sunday, August 17, 2014

छाछ ई घालणी अ'र पगे ई लागणो !

छाछ ई घालणी अ'र पगे ई लागणो !

शब्दार्थ :- किसी व्यक्ति को बिना मूल्य छाछ भी देनी और उसके पाँव भी छूने।

भावार्थ :-बगैर किसी स्वार्थ के किसी का कोई काम करना/कोई उपकार करना और उसके व्यवहार से,आचरण से अपने आप को दबा हुआ भी महसूस करना।

Saturday, August 16, 2014

काम की माँ उरैसी, पूत की माँ परैसी

काम की माँ उरैसी, पूत की माँ परैसी

शब्दार्थ :- काम करने सकने वाली महिला काम करने आ जाये जबकि छोटे बच्चे वाली माँ दूर हट जाए !
भावार्थ :– कर्मठ व्यक्ति सभी को अच्छा लगता है, अकर्मण्य किसी को अच्छा नहीँ लगता।

थोथा चणा,बाजै घणा !

थोथा चणा,बाजै घणा !

शब्दार्थ :- ऐसा चना जो कि खोखला होता है वो ज्यादा आवाज़ करता है।

भावार्थ :- अवगुणी अधिक बढ़–चढ़कर बातेँ करते हैँ।

कड़वी बेल की कड़वी तुमड़ी,अड़सठ तीरथ न्हाई। गंगा न्हाई,गोमती न्हाई,मिटी नहीं कड़वाई।

कड़वी बेल की कड़वी तुमड़ी,अड़सठ तीरथ न्हाई। गंगा न्हाई,गोमती न्हाई,मिटी नहीं कड़वाई।

शब्दार्थ :- कड़वी बेल पर उगी हुई तुमड़ी (लौकी) को अड़सठ तीर्थ के पानी से धोया गया फिर भी वो मीठी नहीं हो पायी,फिर चाहे गंगा के पानी से या गोमती के पानी क्यों नहीं धोया गया हो परन्तु उसकी कड़वाहट काम नहीं हो पायी।
भावार्थ :- जिस बात या वस्तु में जन्मगत/मूलरूप से ही कोई खामी हो या कमी हो तो उसको किसी भी बाहरी उपचार या तरीके से ठीक नहीं किया जा सकता है।

Tuesday, August 12, 2014

छाज तो बोलै सो बोलै, पण चालणी भी बोलै जिकै ठोतरसो बेज !

छाज तो बोलै सो बोलै, पण चालणी भी बोलै जिकै ठोतरसो बेज !

शब्दार्थ : सुपाड़ा तो बोलता ही है (जब उसमें डाल कर अनाज साफ़ किया जाता है तब),परन्तु चलनी भी आवाज करती है,जिसमें की स्वयं अनगिनत छेद होते हैं.

भावार्थ :- – निर्दोष दूसरोँ को सीख देता है तब तक तो ठीक है परन्तु जो स्वयं दोषी हो वो दूसरे किसी को क्या सीख दे सकता है ?

अक्ल बिना ऊँट उभाणा फिरै !

अक्ल बिना ऊँट उभाणा फिरै !

शब्दार्थ :-अक्कल के बगैर ऊंट नंगे पैर घूमते हैं।

भावार्थ :- मूर्ख व्यक्ति धन अथवा साधन होते हुए भी उनका उचित उपयोग नहीं कर पाते।

Sunday, August 10, 2014

हांती थोडी,हुलाण घणी।

हांती थोडी,हुलाण घणी।

शब्दार्थ :- हांती (विवाह का भोजन अपने निकट सम्बन्धियों के घर-घर पहुँचाने की मारवाड़ी परंपरा ) कम भेजना परन्तु  उसका ढिंढोरा ज्यादा ज्यादा पीटना।

भावार्थ:- काम कम करना,परन्तु उसका दिखावा या प्रचार अधिक करना।

Saturday, August 9, 2014

सांत हाथ सुलखणा , हांड़ी बैठे कुलखणा !

सांत हाथ सुलखणा , हांड़ी बैठे कुलखणा !

शब्दार्थ :- किसी काम को करने के लिए ज्यादा लोग हों तो,काम अच्छा होता है,परन्तु वो खाना भो ज्यादा खाते हैं।

भावार्थ:- ज्यादा साधनों से कार्य अच्छा और जल्दी हो जाता है ,परन्तु खर्चा भी ज्यादा होता है (उन साधनों को संभालना भी उतना ही कठिन होता है .)

खींरा आई खिचड़ी,अर टिल्लो आयो टच्च .

खींरा आई खिचड़ी,अर टिल्लो आयो टच्च .               

शब्दार्थ :- जब खिचड़ी पकने के लीये आंच पर चढा दी गई, खाने वाला आ पहूँचा              

भावार्थ :- कार्य में लगनेवाला श्रम किये बगैर सफलता का श्रेय लेने का प्रयास करना

बामण ने दी बूढी गाय,धरम न'ई तो दाळिदर जाये।

बामण ने दी बूढी गाय,धरम न'ई तो दाळिदर जाये।


शब्दार्थ - ब्राह्मण को बूढी गाय दान में दी,जिससे पुण्य लाभ न भी हुआ तो भी बूढी गाय को खिलाने- पिलाने से तो पिंड छूटा।

भावार्थ :- स्वयं को बचाते हुए किसी अनुपयोगी वस्तू या कार्य को दूसरे सर मढ़ना .

खायो- पियो एक नाम , मारयो कुट्यो एक़ नाम।

खायो- पियो एक नाम , मारयो कुट्यो एक़ नाम।

शब्दार्थ - चाहे एक कौर खाया   हो या फिर भरपेट, भोजन करने वालों में तो गिनती हो ही जाती हैं,इसी प्रकार चाहे किसी को थोड़ा पीटे या अधिक, पीटने का नाम तो हो ही जाता है।

भावार्थ :- किसी कार्य को चाहे वो अच्छा हो या बुरा, न्यूनाधिक मात्रा में किये जाने पर भी सभी जगह चर्चा में आ ही जाता है।

घी सुधारे खीचड़ो ,अ'र बड़ी बहु को नाम !

घी सुधारे खीचड़ो ,अ'र बड़ी बहु को नाम !


शब्दार्थ :- घी की अच्छी मात्रा से खीच स्वदिष्ट बन गया ,परन्तु बनाने वाली बड़ी बहु की वाह-वाही हो गयी।

भावार्थ :- साधन की प्रचुरता से कार्य सफल हुआ,परन्तु कार्य करने वाले को सफलता का श्रेय मिल गया।

पञ्चां को कैणो सिर माथै , पण पनाळो अठै ई पडसी.......

पञ्चां को कैणो सिर माथै , पण पनाळो अठै ई पडसी.......

शब्दार्थ - पंचों का निर्णय सिर आँखों पर,लेकिन मेरे घर का पनाला (बरसात के पानी की नाली ) तो यहीं गिरेगा....

भावार्थ:-अनुभवी और प्रतिष्ठित व्यक्ति का फैसला नीतिगत रूप से उचित होते हुए भी,अपनी जिद्द पर अड़े रहना .....

चालणी में दूध दुवै, करमां ने दोस देवै !

चालणी में दूध दुवै, करमां ने दोस देवै !


शब्दार्थ :- चलनी में दूध दुहना और अपने भाग्य को दोष देना।

भावार्थ :- काम को अच्छी रूप-रेखा बनाये बगैर करना और व्यर्थ ही भाग्य को कोसना।

गधेडा ही मुलक जीतले,तो घोड़ा न कुण पूछै। ….

गधेडा ही मुलक जीतले,तो घोड़ा न कुण पूछै। ….

शब्दार्थ - यदि गधे ही मुल्क फतह करले तो फिर घोड़ो को कौन पूछेगा ?

भावार्थ - यदि अप्रशिक्षित व्यक्ति अथवा अपूर्ण साधन से ही कार्य पूर्ण किया जसके तो फिर प्रशिक्षित व्यक्ति या उपयुक्त साधन की क्या जरूरत रहेगी ?

अस्यो भगवानयो भोळो कोनी,जको भुको भेंस्या में जाये.

अस्यो भगवानयो भोळो कोनी,जाको भुको भेंस्या में जाये.

शब्दार्थ :- ऐसा भगवान नामक व्यक्ति तो नासमझ नहीं है की, भूखा ही भैंस चराने के लिए जाये।

भावार्थ :- प्रतिफल की इच्छा के बिना कोई भी व्यक्ति काम नहीं करता है।

खोयो ऊँट, घड़ा म्है ढूँढै !

खोयो ऊँट, घड़ा म्है ढूँढै !

शब्दार्थ :- ऊँट खो गया है और उसे छोटे से घड़े में  ढूंढा जा रहा है।

भावार्थ :- अत्यधिक ठगे जाने / नुकसान हो जाने पर उस चीज़ को, जहां वापस मिलाना असम्भव हो वहां पाने की आशा करना।