पागड़ी गयी आगड़ी, सिर सलामत चायीजै।
शब्दार्थ :- पगड़ी रहे न रहे सिर की सलामती ज्यादा जरुरी है।
भावार्थ :- स्वार्थ की सिद्धि होती हो तो लोक-लाज की परवाह या मर्यादा की चिंता नहीं।
शब्दार्थ :- पगड़ी रहे न रहे सिर की सलामती ज्यादा जरुरी है।
भावार्थ :- स्वार्थ की सिद्धि होती हो तो लोक-लाज की परवाह या मर्यादा की चिंता नहीं।
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