Friday, October 31, 2014

पांचूं आंगळयां सरीसी कोनी हुव़ै !

पांचूं आंगळयां सरीसी कोनी हुव़ै !

शब्दार्थ :-आकार-प्रकार में पांचों उंगलियां एक  समान नहीं होती है।

भावार्थ :- सब आदमी या सब चीजें बराबर नहीं होती हैं,गुण-दोषों के  आधार पर प्रकृति ने भी  सबको अलग-अलग बनाया जरूर है,परन्तु कोई भी आदमी या चीज अनुपयोगी नहीं है।

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