Saturday, November 29, 2014

काकड़ी रा चोर ने मुक्की री मार !

काकड़ी रा चोर ने मुक्की री मार ! 

शब्दार्थ :- ककड़ी की चोरी करने वाले को,केवल मुक्के के मार की ही सज़ा।

भावार्थ :- छोटे या साधारण अपराध का साधारण दंड ही दिया जाता है।

Monday, November 24, 2014

कदेई बड़ा दिन,कदेई बड़ी रात !

कदेई बड़ा दिन,कदेई बड़ी रात !
शब्दार्थ :- कभी दिन बड़े होते हैं तो कभी रात बड़ी हो जाती है।
भावार्थ :- 1.संसार सदा परिवर्तनशील है, समय हमेशा एक समान नहीं रहता।
             2.कभी किसी एक का दांव चल जाता है तो कभी किसी दूसरे का,हर बार किसी का समय  एक  जैसा    नहीं रह पाता है।

बावौ कठैई , अर ऊगै कठेई !

बावौ कठैई , अर ऊगै कठेई ! 

शब्दार्थ :- बोया कहीं और गया था,लेकिन उग गया कहीं दूसरी जगह पर !
भावार्थ :- अस्थिर मनोस्थिति वाले व्यक्ति एक जगह या एक बात पर पर टिक नहीं सकते हैं,वे अपना स्थान या अपना मत बदलते रहते हैं।

जबरो मारै’र रोवण कोनी दै !

जबरो मारै’र रोवण कोनी दै !

शब्दार्थ :- कोई व्यक्ति जोरदार मारता है या किसी और प्रकार से चोट पहुंचता है,परन्तु रोने नहीं देता या उसका दुःख भी प्रकट नहीं करने देता है।
भावार्थ :- कोई व्यक्ति या संस्थान अपने अधिकारों या बल का प्रयोग करते हुए किसी को हानि पहुंचाता है और सामने वाले को उस बात का प्रतिकार करने या दुःख प्रकट करने का भी मौका न दे। 

Sunday, November 23, 2014

आँधा की माखी राम उड़ावै !

आँधा की माखी राम उड़ावै !

शब्दार्थ :-  दृष्टिहीन व्यक्ति पर मंडराती मक्खी भगवान उडाता है। 

भावार्थ :-  जिसका कोई सहारा नहीं होता है,उसका सहारा भगवान होता है।

Saturday, November 22, 2014

बकरी रोव़ै जीव़ नै,खटीक रोव़ै खाल नै !

बकरी रोव़ै जीव़ नै,खटीक रोव़ै खाल नै !

शब्दार्थ :-बकरी अपनी जान चली जाने के डर से रोती है,जबकि खटीक (चमड़े का व्यापार करने वाली जाती के लोग) को बकरी की खाल की चिंता है।

भावार्थ :- सबको अपने-अपने स्वार्थ का ध्यान है; सबको अपने लाभ की चिंता है,पर इस और किसी का ध्यान नहीं है की, इस स्वयं के लाभ के पीछे दूसरे पक्ष की कितनी हानि है।

Friday, November 21, 2014

उछाल भाठो करम में क्यूँ लेवणो ?

उछाल भाठो करम में क्यूँ लेवणो ?

शब्दार्थ :- पत्थर को उछाल कर उसे अपने सर पर क्यूँ लेना ?

भावार्थ :- आफत को स्वयं अपनी ओर से  सिर पर नहीं लेना चाहिये।

Thursday, November 20, 2014

कमावै तो वर, नहीं जणै माटी रो ही ढल !

कमावै तो वर, नहीं जणै माटी रो ही ढल !

शब्दार्थ :-कमाई करता है तो पति है,नहीं तो मिटटी के ढेले के सामान है।

भावार्थ :- धन-अर्जन करता है या कमाई करता है तो पति कहलाने के लायक है,नहीं तो वह मिटटी के ढेले के सामान है।

माटी री भींत डिंगती बार कोनी लगावै !

माटी री भींत डिंगती बार  कोनी लगावै !

शब्दार्थ :- मिट्टी से बनाई हुई दिवार गिरने में ज्यादा समय नहीं लगाती है ।

भावार्थ :- आधे-अधुरे मन से या अपुष्ट संसाधनो से किया हुआ कार्य नष्ट होते देर नहीं लगती है ।

विणज किया था जाट ने सौ का रहग्या तीस !

विणज किया था जाट ने सौ का रहग्या तीस !

शब्दार्थ :- जाट ने सौ रूपया का मूल धन लगा कर व्यापर आरम्भ किया था,पर उसे व्यापर में हानि हुई  और उसका सौ रूपया घाट कर मात्र तीस रूपया रह गया।

भावार्थ :- कार्य वही करना चाहिए जिस के बारे में ज्ञान हो क्योंकि अपूर्ण ज्ञान से किया हुआ कार्य लाभ के स्थान पर हानि पहुंचाता  है।

पाड़ोसी रै बरस'सी तो छांटा तो अठै ई पड़सी !

पाड़ोसी रै बरस'सी तो छांटा तो अठै ई पड़सी !
शब्दार्थ :- पड़ोसियों के यहाँ बारिश होगी तो कुछ बुंदे तो हमारे घर पर भी गिरेगी !

भावार्थ :- अगर हमारे पड़ोसियों के यहाँ सम्पन्नता होगी, उसका कुछ लाभ तो हमें भी प्राप्त होगा ।

Sunday, November 16, 2014

हाथ ई बाळया, होळा ई हाथ कोनी आया !

हाथ ई बाळया, होळा ई हाथ कोनी आया !

शब्दार्थ :- होले (गीले हरे चने) को भुनने का प्रयास किया,पर उस प्रयास में हाथ जल गए।

भावार्थ :- मेहनत की,कष्ट भी सहा, लेकिन प्रतिफल स्वरुप लाभ के स्थान पर हानि हुई। 

Saturday, November 15, 2014

जिस्या ने विस्या ही मिळ्या,ज्यां बामण नै नाई। बो दिवी आसकां, बो आरसी दिखाई॥

जिस्या ने विस्या ही मिळ्या,ज्यां बामण नै नाई। बो दिवी आसकां, बो आरसी दिखाई॥

शब्दार्थ :- एक प्रकार के आचार-व्यहवार वाले को उसी के जैसा मिल गया, जैसे की ब्राह्मण को नाई।एक अगर आसकां (हवन की राख) देता है, तो दुसरा कांच दिखा देता है ।

भावार्थ :- जैसे को तेसा ही मिलता है, कोई काम करवाने के बदले अगर एक कुछ नहीं देता है, दुसरा भी काम मुफ्त में करवा लेता है ।

मिनख कमावै च्यार पहर, ब्याज कमावै आठ पहर ।

मिनख कमावै च्यार पहर, ब्याज कमावै आठ पहर ।

शब्दार्थ :- व्यक्ति काम कर के एक दिन में चार प्रहर (लगभग आधा दिन) कमाता है,जबकि ब्याज का चक्र पुरे समय चलता रहता है।            

भावार्थ :-व्यक्ति के एक दिन में काम करने की एक सीमा होती है,जबकि ब्याज का कुचक्र हर समय चलता रहता है,अतः जब तक हो सके ब्याज को लेकर सतर्क रहना चाहिए।

Thursday, November 13, 2014

रोयां राबड़ी कुण घालै !

रोयां राबड़ी कुण घालै !

शब्दार्थ :- रोने मात्र से राबड़ी कौन खिलाता है ?

भावार्थ :- परिश्रम से सफलता प्राप्त होती है, लक्षय मात्र चिंता करने से या मांगने से प्राप्त नहीं हो सकता है।

मतलब री मनुहार जगत जिमावै चूरमा !

मतलब री मनुहार जगत जिमावै चूरमा !

शब्दार्थ :- स्वार्थ साधने के लिए मनुहार करके यह संसार भोजन/व्यंजन खिलाता  है।

भावार्थ :- स्वार्थ सिद्धि के लिए कुछ लोग अपने स्वाभिमान को नजर अंदाज़ करते हुए किसी की चापलूसी करने लगते हैं। 

Tuesday, November 11, 2014

कथनी सूं करणी दोरी !

कथनी सूं करणी दोरी !
शब्दार्थ :-  कहना आसान है जबकि काम करना दुस्कर होता है।

भावार्थ :- किसी काम की बात को कहना आसान है,क्योंकि बात को कहने में  किसी प्रकार का श्रम नहीं लगता है,जबकि जबकि काम को करना अपेक्षाकृत दुस्कर होता है,क्योंकि किसी कार्य करने के लिए कार्य योजना,श्रम एवं धन लगता है।

चतर री च्यार घड़ी मूरख रो जमारो !

चतर री च्यार घड़ी मूरख रो जमारो !

शब्दार्थ :- चतुर व्यक्ति के लिए चार घड़ी (थोड़ा सा समय ) ही काफी है जबकि मूर्ख का पूरा जीवन भी काम पड़ जाता है।

भावार्थ :- चतुर थोड़े समय ही में जिस काम को कर लेता है,मुर्ख व्यक्ति उसको उम्र भर नहीं कर सकाता।

थूक सूं गांठयोड़ा,किता दिन संधै?

थूक सूं गांठयोड़ा,किता दिन संधै?

शब्दार्थ :- थूक से चिपकाये हुए कितने दिन तक जुड़े हुए रह सकते हैं ?

भावार्थ :- तात्कालिक उप से किया हुआ कार्य अधिक समय के लिए टिकाऊ नहीं हो सकता है।

धीरां रा गांव बसै,उतावळां रा देवळयां हुवै !

धीरां रा गांव बसै,उतावळां रा देवळयां हुवै !

शब्दार्थ :-धैर्यशाली लोगों के नाम से गांव बसा जाते हैं जबकि उतावली करने वालों के सिर्फ स्मारक बनाते हैं।

शीघ्रता से युद्ध में उतरने वाले के केवल स्मारक ही रहते हैं और धैय्र्य वळां
और युद्ध चातुय्र्य वाले पुरुष गांव बसा सकते है।

भावार्थ :- धैर्य औए चातुर्यपूर्वक कार्य करने वालों को सफलता मिलती है,जबकि केवल जोश से,बिना कार्य योजना से काम करने वालों को असफलता का सामना करना पड़ता है। 

साँच कहवे थी मावडी, झूठ कहवे था लोग। खारी लागी मावडी, मीठा लाग्या लोग॥

साँच कहवे थी मावडी, झूठ कहवे था लोग। खारी लागी मावडी, मीठा लाग्या लोग॥

शब्दार्थ :- माँ सच बोल रही थी जबकि लोग झूठ बोल रहे थे। लोग प्रिय लग रहे थे जबकि माँ अप्रिय लग रही थी। 

भावार्थ :- माँ अपने बच्चों की भलाई के लिए सत्य बोलती है परन्तु वो सच मनवांछित नहीं होता इस कारन से कड़ुआ लगता है,जबकि पराये लोग जो अच्छा लगे वैसा ही बोलते हैं,फिर चाहे वो झूठ  ही हो।

Wednesday, November 5, 2014

आया था हर भजन कर'णे,ओटण लाग्या कपास !

आया था हर भजन कर'णे,ओटण लाग्या कपास !
शब्दार्थ :- भगवान का भजन करने को आये थे,परन्तु कपास ओटने लगे।

भावार्थ :- जो सद्कार्य करना आरम्भ किया था उसे तो भूल गए लेकिन उसे छोड़कर कुछ दूसरा काम ही करने लगे।।

Tuesday, November 4, 2014

बांबी कुट्यां सांप थोड़ो ही मरै !

बांबी कुट्यां सांप थोड़ो ही मरै !

शब्दार्थ :-केवल बांबी को पीटने से सांप नहीं मरता है।

भावार्थ :- किसी कठिनाई को मात्र बाहरी उपचार से समाप्त नहीं किया जा सकता है ।

Sunday, November 2, 2014

माया सूं माया मिलै कर–कर लांबा हाथ !

माया सूं माया मिलै कर–कर लांबा हाथ !

शब्दार्थ :- धन संपन्न व्यक्ति का उसी प्रकार के वैभवशाली व्यक्ति से  मिलन अधिक अंतरंगता से होता है ।

भावार्थ :- साधन संपन्न लोगों का,मेल- जोल समान स्तर क़े लोगों से अधिक नजदीकी से होता है ।

मामैरो ब्यांव़ माँ पुुरसगारी, जीमो बेटा रात अंधारी !

मामैरो ब्यांव़,माँ  पुुरसगारी, जीमो बेटा रात अंधारी !

शब्दार्थ :-  मामा का विवाह,माँ भोजन परोसनेवाली और अंधेरी रात है, तो बस फिर और क्या चाहिए,बेटा ! भरपेट खाना खाओ !

भावार्थ :- जिस चीज की आपको आवश्यकता हो,उसे देने वाला ही आपका कोई नजदीकी हो, समय और परिस्तिथियाँ भी अनुकूल हों तो फिर मनचाहा काम होना ही है।