Saturday, August 30, 2014

गरज दीवानी गूजरी नूंत जिमावै खीर,गरज मिटी गूजरी नटी,छाछ नही रे बीर ।

गरज दीवानी गूजरी नूंत जिमावै खीर,गरज मिटी गूजरी नटी,छाछ नही रे बीर।

शब्दार्थ:-अगर अपनी गरज हो तो गूजरी (गुजर एक जाती -जो कि दूध-दही का व्यापार करते हैं) न्यौता देकर खीर खिलाती है परन्तु गरज समाप्त हो जाने पर वही गुजरी कहती है कि,भाई ! मेरे पास तो छाछ भी नहीं है।

भावार्थ :- आवश्यकता होने पर कोई व्यक्ति जो व्यवहार करता है वाही आवश्यकता ख़त्म होने पर उपेक्षा करने लग जाता है।

आयी ही छाछ नै, बण बैठी घर री धणियाणी !

आयी ही छाछ नै, बण बैठी घर री धणियाणी !

शब्दार्थ :-:-छाछ लेने के लिए आयी थी और घर की मालकिन बन बैठी।

भावार्थ :- सहायता लेने के बहाने से किसी बात को आरम्भ करके किसी बात या चीज पर अधिकार करने की कोशिश करना।

पगां बळती को दिसै नी, डूंगर बळती दिस जाय !

पगां बळती को दिसै नी, डूंगर बळती दिस जाय !

शब्दार्थ :- पैरों के पास जलती आग नहीं दिखायी देती, दूर पहाड़ पर जलती हुई दिखायी दे जाती है।

भावार्थ :- अपने दोष नहीं देखते हैं, दूसरों के दिखायी पड़ जाते हैं।

Thursday, August 28, 2014

अभागियो टाबर त्यूंहार ने'ई रूसै !

अभागियो टाबर त्यूंहार ने'ई रूसै !

शब्दार्थ :– भाग्यहीन बालक त्यौंहार के दिन भी नाराज़ हो जाता है,जबकि उस दिन ख़ुशी का माहौल होता है और व्यंजन,पकवान बनते हैं.

भावार्थ :- सुअवसर उपलब्ध होते हुए भी,उस अवसर का अपनी गलती के चलते लाभ न उठा पाना।

अम्बर को तारो,हाथ सै कोनी टूटे!

अम्बर को तारो,हाथ सै कोनी टूटे!
शब्दार्थ :-आकाश का तारा,हाथ से नहीँ टूटता है।
भावार्थ :-उच्च लक्ष्य प्राप्त करने के लिए,सतत प्रयास आवश्यक होता है।

Wednesday, August 27, 2014

पिस्या थारा तीन नाम,परस्या,परसु,परसा राम!

पिस्या थारा तीन नाम,परस्या,परसु,परसा राम!

शब्दार्थ :- पैसा(पैसे /धन) तेरे तीन नाम,परस्या,परसु,परसाराम।

भावार्थ :- व्यक्ति विशेष के पास धन और वैभव आने से लोगों का आचरण परिवर्तित हो जाता है।उसकेसम्मान में भी वृद्धि हो जाती है। निर्धन परसराम (नामक व्यक्ति) परस्या!थोड़ा संपन्न होने परसु और अधिक सम्पन्न होने पर परसा राम कह कर पुकारा जाता है।

Tuesday, August 26, 2014

बान्दरो हुतो , बिच्छू काट ग्यो !

बान्दरो हुतो , बिच्छू काट ग्यो !

शब्दार्थ :-   बन्दर को जैसे बिच्छू ने काट लिया हो।

भावार्थ :- शेखी बघारने वाले या अगुणी अल्पगुणी व्यतित्व वाले को जैसे और अधिक अपना राग अलापने का मौका मिल गया. (जैसे कि  करेला और  नीम  चढ़ा ).

Sunday, August 24, 2014

खुद रा गया रो दुःख कोनी, जेठजी रा रह्योडा रो दुःख है।

खुद रा गया रो दुःख कोनी, जेठजी रा रह्योडा रो दुःख है।

शब्दार्थ:- स्वयं की हानि का दुःख नहीं है हो रहा है ,परन्तु जेठ जी के लाभ/बचत का दुःख हो रहा हैं।

भावार्थ:-  अपने दुःख से भी ज्यादा दुःख,पराये को सुख क्यों मिला इस बात से होता है.

Friday, August 22, 2014

टकै की हांडी फूटी, गंडक की जात पिछाणी ।

 टकै की हांडी फूटी, गंडक की जात पिछाणी ।

शब्दार्थ :- काम मूल्य का मिटटी का बर्तन फूट गया क्योकि वो अच्छी तरह से नहीं बनाया गया था,समय पर अपने मालिक की सहायता न करने से कुत्ते की गुणवत्ता मालूम चल गयी।

भावार्थ :-  थोड़े से नुकसान से ही निम्नस्तर या अवगुणी की पहचान हो गयी ।

सदा न जुग में जीवणा, सदा न काळा केस। सदा न बरसे बादली, सदा न सावण होय।

सदा न जुग में जीवणा, सदा न काळा केस।
सदा न बरसे बादली, सदा न सावण होय।

शब्दार्थ :- संसार कोई भी अमर नहीं है,पूरी उम्र किसीके भी बाल काले नहीं रहते। बादल छाये हुए हों तो जरुरी नहीं कि बरसेंगे ही और हर मौसम सावन नहीं होता।

भावार्थ :- इस संसार में कोई भी वस्तु हमेशा के लिए एक सामान नही रहती है,सब कुछ समय के अधीन है और परिवर्तनशील है।

Wednesday, August 20, 2014

गुड़ कोनी गुलगुला करती,ल्याती तेल उधारो। परींडा में पाणी कोनी, बलीतो कोनी न्यारो। कड़ायो तो मांग कर ल्याती,पण आटा को दुःख न्यारो।


गुड़ कोनी गुलगुला करती,ल्याती तेल उधारो।
परींडा में पाणी कोनी, बळीतो कोनी न्यारो।
कड़ायो तो मांग कर ल्याती,पण आटा को दुःख न्यारो।


शब्दार्थ :- घर में  ग़ुड़ नहीं है वरना गुलगुले बनाती,तेल उधर मांग लाती, परिण्डे( घर में पीने के पानी की मट्की रखने की जगह)  में पानी नहीं है और जलावन(लकड़ी या ईंधन) भी नहीं है, कड़ाई मांग कर लाती परन्तु आटा भी नहीं है.

भावार्थ :- साधन की उपलब्धता नहीं है,वरना किसी कार्य को बहुत अच्छी तरह निपटाया जाता। (किसी की सहायता करने की इच्छा ना हो तो बहाने हज़ार हैं)

Tuesday, August 19, 2014

गंडक की पूँछ कै न्योळी बंधरी है.

गंडक की पूँछ कै न्योळी बंधरी है.

 
शब्दार्थ :- कुत्ते की पूँछ से 'न्योळी'
(कपडे की ऐसी जेबनुमा थेैली जिसमें रूपिये रख कर,पेट पर इस तरह बाँधा जाता है की, कपड़ों के अंदर रहने पर भी अंदाज़ ना हो कि,कुछ बंधा हुआ है) बंधी हुई है।

 भावार्थ :-
अपात्र के पास धन हो भी जाए तो किस काम का जिसका कि,वो उपयोग ही ना कर सके

Monday, August 18, 2014

उन्दरी का जयोड़ा ने बिल तो खोदणो ई पड़े।

उन्दरी का जयोड़ा ने बिल तो खोदणो ई पड़े।

शब्दार्थ :-चुहिया के बच्चे को बिल तो खोदना ही पड़ता है।

भावार्थ :-इस संसार में जन्मे हुए हर व्यक्ति को अपने जीवनयापन के लिए कार्य तो क
रना ही पड़ता है।
उन्दरी का जयोड़ा ने बिल तो खोदणो ई पड़े।

शब्दार्थ :-चुहिया के बच्चे को बिल तो खोदना ही पड़ता है।

भावार्थ :-इस संसार में जन्मे हुए हर व्यक्ति को अपने जीवनयापन के लिए

Sunday, August 17, 2014

छाछ ई घालणी अ'र पगे ई लागणो !

छाछ ई घालणी अ'र पगे ई लागणो !

शब्दार्थ :- किसी व्यक्ति को बिना मूल्य छाछ भी देनी और उसके पाँव भी छूने।

भावार्थ :-बगैर किसी स्वार्थ के किसी का कोई काम करना/कोई उपकार करना और उसके व्यवहार से,आचरण से अपने आप को दबा हुआ भी महसूस करना।

Saturday, August 16, 2014

काम की माँ उरैसी, पूत की माँ परैसी

काम की माँ उरैसी, पूत की माँ परैसी

शब्दार्थ :- काम करने सकने वाली महिला काम करने आ जाये जबकि छोटे बच्चे वाली माँ दूर हट जाए !
भावार्थ :– कर्मठ व्यक्ति सभी को अच्छा लगता है, अकर्मण्य किसी को अच्छा नहीँ लगता।

थोथा चणा,बाजै घणा !

थोथा चणा,बाजै घणा !

शब्दार्थ :- ऐसा चना जो कि खोखला होता है वो ज्यादा आवाज़ करता है।

भावार्थ :- अवगुणी अधिक बढ़–चढ़कर बातेँ करते हैँ।

कड़वी बेल की कड़वी तुमड़ी,अड़सठ तीरथ न्हाई। गंगा न्हाई,गोमती न्हाई,मिटी नहीं कड़वाई।

कड़वी बेल की कड़वी तुमड़ी,अड़सठ तीरथ न्हाई। गंगा न्हाई,गोमती न्हाई,मिटी नहीं कड़वाई।

शब्दार्थ :- कड़वी बेल पर उगी हुई तुमड़ी (लौकी) को अड़सठ तीर्थ के पानी से धोया गया फिर भी वो मीठी नहीं हो पायी,फिर चाहे गंगा के पानी से या गोमती के पानी क्यों नहीं धोया गया हो परन्तु उसकी कड़वाहट काम नहीं हो पायी।
भावार्थ :- जिस बात या वस्तु में जन्मगत/मूलरूप से ही कोई खामी हो या कमी हो तो उसको किसी भी बाहरी उपचार या तरीके से ठीक नहीं किया जा सकता है।

Tuesday, August 12, 2014

छाज तो बोलै सो बोलै, पण चालणी भी बोलै जिकै ठोतरसो बेज !

छाज तो बोलै सो बोलै, पण चालणी भी बोलै जिकै ठोतरसो बेज !

शब्दार्थ : सुपाड़ा तो बोलता ही है (जब उसमें डाल कर अनाज साफ़ किया जाता है तब),परन्तु चलनी भी आवाज करती है,जिसमें की स्वयं अनगिनत छेद होते हैं.

भावार्थ :- – निर्दोष दूसरोँ को सीख देता है तब तक तो ठीक है परन्तु जो स्वयं दोषी हो वो दूसरे किसी को क्या सीख दे सकता है ?

अक्ल बिना ऊँट उभाणा फिरै !

अक्ल बिना ऊँट उभाणा फिरै !

शब्दार्थ :-अक्कल के बगैर ऊंट नंगे पैर घूमते हैं।

भावार्थ :- मूर्ख व्यक्ति धन अथवा साधन होते हुए भी उनका उचित उपयोग नहीं कर पाते।

Sunday, August 10, 2014

हांती थोडी,हुलाण घणी।

हांती थोडी,हुलाण घणी।

शब्दार्थ :- हांती (विवाह का भोजन अपने निकट सम्बन्धियों के घर-घर पहुँचाने की मारवाड़ी परंपरा ) कम भेजना परन्तु  उसका ढिंढोरा ज्यादा ज्यादा पीटना।

भावार्थ:- काम कम करना,परन्तु उसका दिखावा या प्रचार अधिक करना।

Saturday, August 9, 2014

सांत हाथ सुलखणा , हांड़ी बैठे कुलखणा !

सांत हाथ सुलखणा , हांड़ी बैठे कुलखणा !

शब्दार्थ :- किसी काम को करने के लिए ज्यादा लोग हों तो,काम अच्छा होता है,परन्तु वो खाना भो ज्यादा खाते हैं।

भावार्थ:- ज्यादा साधनों से कार्य अच्छा और जल्दी हो जाता है ,परन्तु खर्चा भी ज्यादा होता है (उन साधनों को संभालना भी उतना ही कठिन होता है .)

खींरा आई खिचड़ी,अर टिल्लो आयो टच्च .

खींरा आई खिचड़ी,अर टिल्लो आयो टच्च .               

शब्दार्थ :- जब खिचड़ी पकने के लीये आंच पर चढा दी गई, खाने वाला आ पहूँचा              

भावार्थ :- कार्य में लगनेवाला श्रम किये बगैर सफलता का श्रेय लेने का प्रयास करना

बामण ने दी बूढी गाय,धरम न'ई तो दाळिदर जाये।

बामण ने दी बूढी गाय,धरम न'ई तो दाळिदर जाये।


शब्दार्थ - ब्राह्मण को बूढी गाय दान में दी,जिससे पुण्य लाभ न भी हुआ तो भी बूढी गाय को खिलाने- पिलाने से तो पिंड छूटा।

भावार्थ :- स्वयं को बचाते हुए किसी अनुपयोगी वस्तू या कार्य को दूसरे सर मढ़ना .

खायो- पियो एक नाम , मारयो कुट्यो एक़ नाम।

खायो- पियो एक नाम , मारयो कुट्यो एक़ नाम।

शब्दार्थ - चाहे एक कौर खाया   हो या फिर भरपेट, भोजन करने वालों में तो गिनती हो ही जाती हैं,इसी प्रकार चाहे किसी को थोड़ा पीटे या अधिक, पीटने का नाम तो हो ही जाता है।

भावार्थ :- किसी कार्य को चाहे वो अच्छा हो या बुरा, न्यूनाधिक मात्रा में किये जाने पर भी सभी जगह चर्चा में आ ही जाता है।

घी सुधारे खीचड़ो ,अ'र बड़ी बहु को नाम !

घी सुधारे खीचड़ो ,अ'र बड़ी बहु को नाम !


शब्दार्थ :- घी की अच्छी मात्रा से खीच स्वदिष्ट बन गया ,परन्तु बनाने वाली बड़ी बहु की वाह-वाही हो गयी।

भावार्थ :- साधन की प्रचुरता से कार्य सफल हुआ,परन्तु कार्य करने वाले को सफलता का श्रेय मिल गया।

पञ्चां को कैणो सिर माथै , पण पनाळो अठै ई पडसी.......

पञ्चां को कैणो सिर माथै , पण पनाळो अठै ई पडसी.......

शब्दार्थ - पंचों का निर्णय सिर आँखों पर,लेकिन मेरे घर का पनाला (बरसात के पानी की नाली ) तो यहीं गिरेगा....

भावार्थ:-अनुभवी और प्रतिष्ठित व्यक्ति का फैसला नीतिगत रूप से उचित होते हुए भी,अपनी जिद्द पर अड़े रहना .....

चालणी में दूध दुवै, करमां ने दोस देवै !

चालणी में दूध दुवै, करमां ने दोस देवै !


शब्दार्थ :- चलनी में दूध दुहना और अपने भाग्य को दोष देना।

भावार्थ :- काम को अच्छी रूप-रेखा बनाये बगैर करना और व्यर्थ ही भाग्य को कोसना।

गधेडा ही मुलक जीतले,तो घोड़ा न कुण पूछै। ….

गधेडा ही मुलक जीतले,तो घोड़ा न कुण पूछै। ….

शब्दार्थ - यदि गधे ही मुल्क फतह करले तो फिर घोड़ो को कौन पूछेगा ?

भावार्थ - यदि अप्रशिक्षित व्यक्ति अथवा अपूर्ण साधन से ही कार्य पूर्ण किया जसके तो फिर प्रशिक्षित व्यक्ति या उपयुक्त साधन की क्या जरूरत रहेगी ?

अस्यो भगवानयो भोळो कोनी,जको भुको भेंस्या में जाये.

अस्यो भगवानयो भोळो कोनी,जाको भुको भेंस्या में जाये.

शब्दार्थ :- ऐसा भगवान नामक व्यक्ति तो नासमझ नहीं है की, भूखा ही भैंस चराने के लिए जाये।

भावार्थ :- प्रतिफल की इच्छा के बिना कोई भी व्यक्ति काम नहीं करता है।

खोयो ऊँट, घड़ा म्है ढूँढै !

खोयो ऊँट, घड़ा म्है ढूँढै !

शब्दार्थ :- ऊँट खो गया है और उसे छोटे से घड़े में  ढूंढा जा रहा है।

भावार्थ :- अत्यधिक ठगे जाने / नुकसान हो जाने पर उस चीज़ को, जहां वापस मिलाना असम्भव हो वहां पाने की आशा करना।