Saturday, August 16, 2014

कड़वी बेल की कड़वी तुमड़ी,अड़सठ तीरथ न्हाई। गंगा न्हाई,गोमती न्हाई,मिटी नहीं कड़वाई।

कड़वी बेल की कड़वी तुमड़ी,अड़सठ तीरथ न्हाई। गंगा न्हाई,गोमती न्हाई,मिटी नहीं कड़वाई।

शब्दार्थ :- कड़वी बेल पर उगी हुई तुमड़ी (लौकी) को अड़सठ तीर्थ के पानी से धोया गया फिर भी वो मीठी नहीं हो पायी,फिर चाहे गंगा के पानी से या गोमती के पानी क्यों नहीं धोया गया हो परन्तु उसकी कड़वाहट काम नहीं हो पायी।
भावार्थ :- जिस बात या वस्तु में जन्मगत/मूलरूप से ही कोई खामी हो या कमी हो तो उसको किसी भी बाहरी उपचार या तरीके से ठीक नहीं किया जा सकता है।

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