Saturday, August 30, 2014

गरज दीवानी गूजरी नूंत जिमावै खीर,गरज मिटी गूजरी नटी,छाछ नही रे बीर ।

गरज दीवानी गूजरी नूंत जिमावै खीर,गरज मिटी गूजरी नटी,छाछ नही रे बीर।

शब्दार्थ:-अगर अपनी गरज हो तो गूजरी (गुजर एक जाती -जो कि दूध-दही का व्यापार करते हैं) न्यौता देकर खीर खिलाती है परन्तु गरज समाप्त हो जाने पर वही गुजरी कहती है कि,भाई ! मेरे पास तो छाछ भी नहीं है।

भावार्थ :- आवश्यकता होने पर कोई व्यक्ति जो व्यवहार करता है वाही आवश्यकता ख़त्म होने पर उपेक्षा करने लग जाता है।

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