Wednesday, August 20, 2014

गुड़ कोनी गुलगुला करती,ल्याती तेल उधारो। परींडा में पाणी कोनी, बलीतो कोनी न्यारो। कड़ायो तो मांग कर ल्याती,पण आटा को दुःख न्यारो।


गुड़ कोनी गुलगुला करती,ल्याती तेल उधारो।
परींडा में पाणी कोनी, बळीतो कोनी न्यारो।
कड़ायो तो मांग कर ल्याती,पण आटा को दुःख न्यारो।


शब्दार्थ :- घर में  ग़ुड़ नहीं है वरना गुलगुले बनाती,तेल उधर मांग लाती, परिण्डे( घर में पीने के पानी की मट्की रखने की जगह)  में पानी नहीं है और जलावन(लकड़ी या ईंधन) भी नहीं है, कड़ाई मांग कर लाती परन्तु आटा भी नहीं है.

भावार्थ :- साधन की उपलब्धता नहीं है,वरना किसी कार्य को बहुत अच्छी तरह निपटाया जाता। (किसी की सहायता करने की इच्छा ना हो तो बहाने हज़ार हैं)

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