Thursday, November 20, 2014

विणज किया था जाट ने सौ का रहग्या तीस !

विणज किया था जाट ने सौ का रहग्या तीस !

शब्दार्थ :- जाट ने सौ रूपया का मूल धन लगा कर व्यापर आरम्भ किया था,पर उसे व्यापर में हानि हुई  और उसका सौ रूपया घाट कर मात्र तीस रूपया रह गया।

भावार्थ :- कार्य वही करना चाहिए जिस के बारे में ज्ञान हो क्योंकि अपूर्ण ज्ञान से किया हुआ कार्य लाभ के स्थान पर हानि पहुंचाता  है।

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