Friday, September 26, 2014

ठठैरे री मिन्नी खड़के सूं थोड़ाइं डरै !

ठठैरे री मिन्नी खड़के सूं थोड़ाइं डरै !

शब्दार्थ :-  ठठैरे ( जो की धातु की चद्दर की पीट -पीट कर बर्तन बनाता है ) के वहां रहने वाली बिल्ली खटखट करने से डरकर नहीं भागती क्योंकि वह तो सदा खटखट सुनती रहती है।

भावार्थ :- किसी कठिन माहौल में रहने-जीने व्यक्ति के लिए वहां की कठिनाई आम बात होती हैं,वह उस परिस्तिथि से घबराता नहीं है।

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